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हाथ पर हाथ धरकर बैठने से अच्छा है कोई उपाय किया जाए

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संजय मग्गू
बंगाल की खाड़ी में उठे चक्रवाती तूफान दाना उड़ीसा और पश्चिम बंगाल को कितना नुकसान पहुंचाएगा यह तो तूफान के गुजर जाने के बाद ही पता चलेगा। पिछले कुछ दशकों से बार-बार उठ रहे चक्रवाती तूफान के पीछे निश्चित तौर पर जलवायु परिवर्तन है। जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल फसल चक्र बदल रहा है, बल्कि अर्थव्यवस्था पर भी बहुत ज्यादा असर पड़ रहा है। अब चक्रवाती तूफान दाना को ही लें। यह दोनों राज्यों में जितना भी नुकसान पहुंचाएगा, दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था को ही यह नुकसान झेलना पड़ेगा। तो फिर जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए क्या किया जाए? दुनिया भर के वैज्ञानिक लगे हुए हैं। कार्बन कैप्चर से लेकर वायु मंडल में डायमंड डस्टिंग जैसे तमाम उपाय तलाशे जा रहे हैं। इस समय की सबसे पहली जरूरत तो यह है कि पृथ्वी को किसी भी तरह गर्म होने से रोका जाए। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि कार्बन उत्सर्जन पर नियंत्रण किया जाए और पृथ्वी के वायु मंडल में आने वाले प्रकाश को वहीं रोककर परावर्तित कर दिया जाए। स्विटजरलैंड के वैज्ञानिक एसके कैस्लिन ने पृथ्वी को गर्म होने से रोकने के लिए वायु मंडल में सिंथेटिक डायमंड डस्टिंग का सुझाव दिया है। इसके लिए चाहिए 50 लाख टन सिंथेटिक हीरे की धूल। इतनी बड़ी मात्रा में सिंथेटिक हीरे का निर्माण और उसकी डस्ट को इकट्ठा करना कोई आसान काम नहीं है। सिंथेटिक हीरे के उत्पादन और डस्ट को वायुमंडल तक पहुंचाने में भी 16816 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इतनी बड़ी रकम आएगी कहां से? स्वाभाविक है कि यह रकम विकसित देशों और विकासशील देशों को आपस में वहन करनी होगी। जलवायु परिवर्तन पर विचार-विमर्श करने और इस संबंध में भावी रणनीतियां बनाने के लिए बनाए गए कान्फ्रेंस आॅफ द पार्टीज यानी कॉप से जुड़े देश हर साल में एक बार कहीं न कहीं समिट करते हैं। बड़े जोर-शोर से प्रचार किया जाता है। जनता टकटकी लगाए इन समिट के सकारात्मक नतीजों का इंतजार करती है। सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष, वैज्ञानिक और प्रशासनिक अधिकारी आते हैं, लंबी-लंबी बहसें करते हैं, कुछ नीतियां और प्रतिज्ञाओं पर भाषण दिए जाते हैं और उसके बाद सब टांय-टांय फिस्स हो जाता है। मानो राष्ट्राध्यक्षों के लिए पिकनिक पार्टी का आयोजन किया गया था। कार्बन उत्सर्जन रोकने के लिए किए जाने वाले उपायों के लिए जब फंड देने की बात आती है, तो सारे देश चुप्पी साध जाते हैं। अविकसित देशों को धमकाने लगते हैं, उन पर खर्च डालने की कोशिश करते हैं। ऐसी स्थिति पिछले साल यानी 2023 की ग्लोबल इकोनामी से दो गुनी रकम भला डायमंड डस्टिंग के लिए देने को कोई देश तैयार होगा? वैसे यह विकल्प काफी स्थायी है। सिंथेटिक डायमंड डस्ट काफी सालों तक वायुमंडल में मौजूद रहेगी। यह प्रकाश को परावर्तित करके वापस लौटा देगी। अम्लीय बरसात का भी इस पर कोई असर नहीं होगा। हां, 45 साल बाद धरती का तापमान 1.6 डिग्री घट जाएगा, ऐसा स्विटजर लैंड के वैज्ञानिक कह रहे हैं। ऐसी स्थिति में हाथ पर हाथ धरकर बैठने से अच्छा है, कुछ न कुछ किया जाए।

संजय मग्गू

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