यदि हम किसी से ईर्ष्या करते हैं, तो समझ लेना चाहिए कि हमारे दिमाग में विकृति आ गई है। ईर्ष्या, अहंकार, वैमनस्य व्यक्ति में कुटिलता का समावेश कर देते हैं और व्यक्ति का चरित्र दूषित हो जाता है। पुराने जमाने में एक गुरु थे। उनका नाम ज्ञानेश्वर था। यह ज्ञानेश्वर महाराष्ट्र के प्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर नहीं थे। तो गुरु ज्ञानेश्वर एक गुरुकुल आश्रम चलाते थे। इनके यहां पढ़ने के लिए हजारों युवक-युवतियां आते थे। इनकी बहुत ख्याति थी। एक बार उन्होंने महसूस किया कि उनके शिष्यों में मनमुटाव हो गया है। वे एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं। यह देखकर गुरु ज्ञानेश्वर को काफी दुख हुआ।
एक दिन उन्होंने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि वे कल सुबह होने वाले प्रवचन में बड़ा सा आलू लेकर आएं। उन आलू पर वे जिससे ईर्ष्या करते हैं, उनका नाम लिखकर लाए। गुरु जी की यह बात सुनकर शिष्यों को काफी अजीब लगा। लेकिन वे कर भी क्या सकते थे। अगले दिन कोई शिष्य चार आलू लाया, तो कोई पांच। किसी किसी के पास तो छह से ज्यादा आलू थे। गुरु जी ने आदेश दिया कि आप सबको यह आलू सात दिनों तक अपने पास रखने हैं। खाते-पीते, सोते-जागते, सभी समय ये आलू इनके पास ही रहेंगे। शिष्यों ने सोचा कि गुरु जी यह अटपटा आदेश क्यों दे रहे हैं?
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लेकिन गुरु की आज्ञा मानकर उन्हें रखना पड़ा। तीन-चार दिन बाद उन्होंने देखा कि आलू सड़ने लगे हैं। जैसे-तैसे करके सात दिन बीते। इस बीच आलू पूरी तरह सड़ गए थे, उनसे बदबू आ रही थी। उन्होंने सातवें दिन आलू फेंका और गुरु जी के पास गए। गुरुजी ने कहा कि जब एक आलू सात दिन में सड़ गया, उससे बदबू आने लगी, तो आप लोग इतने सालों से दिमाग में ईर्ष्या रखकर कैसे जी लेते हो। यह सुनकर शिष्य शर्मिंदा हो गए।
-अशोक मिश्र
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