संजय मग्गू
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने कार्यकाल के अंतिम भाषण में कुछ ऐसे मुद्दों को रेखांकित किया है जिन पर लोकतांत्रिक देशों को ध्यान देना चाहिए। जो बाइडेन ने अपने विदाई संबोेधन में कहा कि आज अमेरिका में मुट्ठीभर लोगों के पास सत्ता का केंद्रीकरण हो रहा है, जो देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है। इस स्थिति से आम लोगों के बुनियादी अधिकार भी खतरे में पड़ सकते हैं, क्योंकि यह निष्पक्ष अवसरों को समाप्त कर सकता है। सामान्य तौर पर जो बाइडेन का यह बयान नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर एक कटाक्ष माना जा रहा है, लेकिन वस्तुत: यह उन लोकतांत्रिक देशों के लिए एक चेतावनी की तरह है जहां सत्ता और संपत्ति का केंद्रीयकरण हो रहा है। अमेरिका ही नहीं, दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में अमीरों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है। अमेरिका के संदर्भ में एलन मस्क सबसे बड़े उदाहरण हैं। ट्रंप इन निकट भविष्य में बड़ी कृपा बरसाने वाले हैं। अमेरिकी शासन-प्रशासन में एलन मस्क का हस्तक्षेप बढ़ने की आशंका दिखाई दे रही है। चंद मुट्ठी भर अमीर देश की शासन व्यवस्था को कैप्चर कर सकते हैं। पूरी दुनिया की एक प्रतिशत आबादी वाले अमीर लोगों के पास 95 प्रतिशत आबादी से ज्यादा धन और संसाधन है। अमेरिका और यूरोप में अमीर लोगों की संख्या बाकी देशों से ज्यादा है। यह सही है कि संपन्नता पूरी में बढ़ रही है, लेकिन किसकी? उनकी जिनके पास पहले से धन है, जो पहले से ही साधन संपन्न हैं, जो सत्ता के नजदीक हैं। एक आंकड़ा बताता है कि साल 2020 के बाद दुनिया के पांच सबसे रईसों की संपत्ति दो गुनी रफ्तार से बढ़ी है। संपत्ति बढ़ने की रफ्तार 14 मिलियन डॉलर प्रति घंटा रही है। दुनिया के चंद मुट्ठी भर अमीरों ने लगभग सभी क्षेत्रों में एकाधिकार कायम कर लिया है। इसको सोशल मीडिया के क्षेत्र में हुए एकाधिकार से समझा जा सकता है। जो बाइडेन की बात को भले ही अभी हम नकार दें, लेकिन आने वाले कुछ वर्षों में इसके नकारात्मक परिणाम हमारे सामने होंगे। पूरी आबादी के सिर्फ एक प्रतिशत लोगों के पास पूरी दुनिया की 95 प्रतिशत संपत्ति और संसाधन होने का परिणाम यह होगा कि दुनिया की एक बहुत बड़ी आबादी इतनी गरीब होगी कि वह दो वक्त की रोटी के लिए तरसेगी। रोजगार भी शायद एक बहुत बड़ी आबादी के पास नहीं होगा। दुनिया का हर आदमी स्टार्टअप्स शुरू नहीं कर सकता है। हर नागरिक टेक्नोलॉजी में विशेषज्ञ नहीं हो सकता है। पूरी आबादी के दस से बीस प्रतिशत लोग ही टेक्नोलॉजी के साथ कदमताल कर पाएंगे। बाकी लोग कहां जाएंगे? जाहिर सी बात है कि इन लोगों के पास न रोजगार होगा, न पैसा होगा, न खाने को अनाज होगा। एक तरफ चंद मुट्ठी भर लोगों के पास विलासिता के समस्त संसाधन मुहैया होंगे, दूसरी ओर होंगे नर कंकाल की तरह दिखते नंगे-भूखे लोग। और फिर क्या होगा, इसकी कल्पना सहज नहीं है।
कतई गलत नहीं कह रहे हैं राष्ट्रपति जो बाइडेन
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