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कोटा शहर के कोचिंग कारोबार को लगा झटका

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देवेंद्र शर्मा

राजस्थान का कोटा शहर अब उदास हो रहा है। किसी हताश और निराश प्रेयसी की तरह श्री हीन दिखने लगा है कोटा, जैसे उसका प्रेमी उससे नाराज होकर कहीं दूर चला गया हो। पूरे शहर में एक अजीब सी वीरानी छाई हुई है। इस वीरानी का कारण यह है कि जिसकी वजह से कोटा शहर गुलजार रहता था, वह अब कोटा के प्रति उदासीन हो रहा है। कोटा शहर में कोचिंग पढ़ने आने वाले छात्र-छात्राओं की वजह चमकते-दमकते कोटा में अब हर इलाके के हॉस्टल्स और पीजी में ‘टूलेट्स’ के बोर्ड लटकते दिखाई दे रहे हैं। चालीस-पचास कमरों वाले हॉस्टल्स या पीजी में बीस-बाइस कमरे खाली हैं। जिन कमरों से दस-पंद्रह हजार रुपये मासिक किराया आता था, अब उन कमरों को अब कोई सात से आठ हजार रुपये मासिक पर किराये पर लेने को तैयार नहीं है। इस साल तीस-बत्तीस प्रतिशत छात्र-छात्राओं ने कोटा शहर की ओर रुख ही नहीं किया है।
लगभग साढ़े तीन दशक पहले यानी 1990 के आसपास वीके बंसल ने कोटा शहर के विज्ञान नगर में बंसल क्लासेस की शुरुआत की थी। उन दिनों बंसल क्लासेस में बहुत कम छात्र-छात्राओं की संख्या थी, लेकिन धीरे-धीरे बंसल क्लासेस में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं ने नीट और आईटी क्षेत्र में सफलता हासिल करनी शुरू की, तो लोगों का ध्यान इस ओर गया। फिर क्या था? कोटा शहर में एक कोचिंग उद्योग खड़ा हो गया। अकेले कोटा शहर में अब छह हजार करोड़ रुपये की कोचिंग इंडस्ट्री चल रही है, लेकिन इस बार कोचिंग कारोबार में लगभग आधा यानी तीन हजार करोड़ रुपये की ही कमाई ही पाई है। यदि यही स्थिति रही, तो कोचिंग इंडस्ट्री के सालाना कारोबार में और कमी आने की आशंका है। कोचिंग इंडस्ट्री के सहारे जिन लोगों ने अपने घरों को हॉस्टल या पीजी में तब्दील कर दिया था, उन लोगों को इस बार काफी घाटा उठाना पड़ रहा है।
इसका कारण छात्र-छात्राओं की लगातार बढ़ती आत्महत्या की घटनाएं और सरकार की नई कोचिंग नीति को माना जा रहा है। यदि कोटा शहर में ही छात्र-छात्राओं के आत्महत्या करने के आंकड़ों पर गौर करें, तो सारी स्थिति साफ हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक लगभग दो लाख बच्चे कोटा शहर में कोचिंग के लिए आते हैं। अधिकतर यह बच्चे बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा जैसे राज्यों से होते हैं। लेकिन इस बार सिर्फ एक लाख बीस हजार बच्चों के ही आने की बात कही जा रही है। इसका कारण पढ़ाई का बढ़ता दबाव और कोचिंग संस्थानों के रवैये के कारण बच्चों का आत्महत्या करना माना जा रहा है।
पिछले साल कोटा शहर में ही 23 बच्चों ने आत्महत्या कर ली थी। इसकी वजह से कोचिंग में पढ़ने वाले बच्चों में एक तरह की दहशत फैल गई। कल तक साथ पढ़ने वाला, एक ही हॉस्टल में साथ रहने वाला बच्चा यदि पढ़ाई और सफल न हो पाने की आशंका के चलते आत्महत्या कर लेता है, तो उसके साथ पढ़ने और रहने वाले छात्र-छात्राओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वह अपने ऊपर एक मानसिक दबाव महसूस करने लगते हैं। वह अपने दिवंगत साथी की बातों और उसकी यादों को याद करके विचलित होने लगते हैं। यही वजह है कि उनका मन उचाट हो जाता है। और वे वापस लौट जाने को मजबूर हो जाते हैं।
इसके लिए कोचिंग संस्थानों की पढ़ाई का तरीका भी जिम्मेदार है। कोचिंग संस्थान अपने यहां पढ़ने वाले बच्चों के साथ रोबोट की तरह व्यवहार करते हैं। दिन भर पढ़ाने के बाद उसे इतना होमवर्क दे देते हैं कि वह ठीक से न सो पाते हैं, न आराम कर पाते हैं। और कुछ कमजोर बच्चे इससे टूट जाते हैं और आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। कोटा शहर में सहित अन्य शहरों में चल रही कोचिंग में छात्र-छात्राओं के घटने की वजह शिक्षा मंत्रालय ने न्यू एजुकेशन पॉलिसी 2020 के तहत गाइडलाइन फॉर रजिस्ट्रेशन रेगुलेशन कोचिंग सेंटर 2024 को माना जा रहा है। नियम के मुताबिक 16 साल से कम उम्र के बच्चे अब देश के किसी भी कोचिंग संस्थान में दाखिला नहीं ले सकते हैं। इससे भी कोचिंग पढ़ने वाले बच्चों की संख्या कम हो रही है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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