देश रोज़ाना: अभी पिछले दिनों मुंबई हाईकोर्ट ने एक कम्पनी के एक बर्खास्त कर्मचारी के मामले में अपनी टिप्पणी करते हुए एकदम सही बात कही कि अभिव्यक्ति या बोलने की आजादी को बेकाबू होने की इजाजत नहीं दी जा सकती। बिल्कुल सही कहा। यह होना चाहिए। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का एक दायरा खींचना बहुत जरूरी है। इस आजादी शब्द का फायदा उठाकर इस देश में अनेक लोग राष्ट्र विरोधी हरकतें भी कर देते हैं। उत्तर प्रदेश के एक नेता ने कभी भारत माँ को डायन कह दिया था। कुछ भड़काऊ भाई जान भी सामाजिक समरसता को खत्म करने वाले भाषण देते रहते हैं । दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे इंशाल्लाह’ का नारा लगाया जा चुका है।
दुर्भाग्य की बात है कि अभिव्यक्ति की आजादी का नाम लेकर अनेक लोग सोशल मीडिया में अभद्रता की सीमा रेखा पार कर जाते हैं। कुछ लोग तो सीधे-सीधे गालियां भी देने लगते हैं। किसी व्यक्ति विशेष पर अपमानजनक टिप्पणी करते हुए लोग सोचते हैं कि यह हमारी अभिव्यक्ति की आजादी है। ऐसे अल्पज्ञ यह समझ नहीं पाते कि यह सीधे-सीधे मानहानि का मामला है। सार्वजनिक रूप से किसी व्यक्ति का नाम लेकर उसकी निंदा करना उसकी मानहानि है । लेकिन लोग ऐसा करने से बाज नहीं आते। हालांकि कभी-कभी ऐसे लोग गच्चा भी खाते हैं, जब उन पर मानहानि का मुकदमा दायर हो जाता है। तब कोर्ट में या तो माफी मांगते हैं या फिर कुछ दिनों की जेल भुगतते हैं। पिछले कुछ वर्षों से राजनीति के क्षेत्र में भी एक दूसरे की मानहानि का सिलसिला जारी है। किसी नेता की आलोचना किसी मुद्दे को लेकर की जा सकती है कि उनकी यह नीति ठीक नहीं है। लेकिन सीधे-सीधे उसे किसी कटु शब्दों से संबोधित करना उसकी मानहानि है। उसके प्रति घृणा की भावना दिखाते हुए किसी के मर जाने की कामना करना, उसे नाली का कीड़ा बताना, राक्षस आदि-आदि कहना अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग है। इससे हर व्यक्ति को बचाना चाहिए।
चाहे वह किसी भी दल का हो। भाषा का संयम बहुत जरूरी है। भाषा का पतन व्यक्ति के पतन का परिचायक है। जब किसी के पास अच्छे शब्द नहीं रहते, तब वे गलियों का सहारा लेते हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह सटीक बात कही कि आॅटोमोबाइल कंपनी में काम करने वाले व्यक्ति को अगर प्रबंधन से कोई दिक्कत थी तो वह अपने स्तर पर लड़ाई लड़ सकता था। कोर्ट जा सकता था, लेकिन उसने सोशल मीडिया में कंपनी के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक पोस्ट लिखी, ऐसा करने से उस कंपनी की छवि खराब हुई। इस कारण कंपनी ने उस कर्मचारी को नौकरी से निकाल दिया। फिर उसने श्रम न्यायालय की शरण ली। उसके बाद वह हाईकोर्ट गया। तब पूरे मामले को समझते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि कंपनी ने बिल्कुल ठीक किया।
हाईकोर्ट के इस निर्णय से हर निजी कंपनी या सरकारी महकमे में काम करने वाले कर्मचारियों को एक सबक मिलेगा कि आप सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपनी भड़ास निकालने के लिए बिल्कुल न करें। हम अपनी बात प्रतीको में तो कर ही सकते हैं। अगर कहीं कोई गलत प्रवृत्ति पनप रही है तो उसका जिक्र किया जा सकता है। लेकिन किसी व्यक्ति या कंपनी विशेष का नाम लेकर उसके खिलाफ सार्वजनिक रूप से कुछ कहना सीधे-सीधे मानहानि है। अगर कहीं कोई शिकायत है तो उसके विरुद्ध गांधीवादी तरीके से आंदोलन किया जा सकता है, धरना दिया जा सकता है, प्रदर्शन किया जा सकता है। लेकिन यह नहीं कि मोबाइल खोल कर फेसबुक में अनाप-शनाप लिख दिया।
अभिव्यक्ति की आजादी का यह मतलब कतई नहीं कि हम अपनी कुंठा का वमन ही करने लग जाएं। इस देश में अभिव्यक्ति की आजादी का कुछ लोग निरंतर दुरुपयोग कर रहे हैं। ऐसे लोगों पर कड़ी कार्रवाई भी हो रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सोशल मीडिया में सक्रिय लोग अनसोशल हरकतों से बचेंगे और अपनी जिम्मेदारी समझते हुए भाषा की मर्यादा का पालन करेंगे।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
- गिरीश पंकज