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दूसरों के नहीं, अपने अवगुण देखो, वत्स!

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कुछ लोग दुनिया में ऐसे भी होते हैं, जो सिर्फ दूसरों के ही अवगुण देखते हैं। उन्हें हर आदमी में कुछ न कुछ बुराई जरूर दिखती है। कोई कितना भी अच्छा करने का प्रयास करे, ऐसे लोग कुछ न कुछ कमी जरूर खोज निकालते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो किसी में कोई बुराई नहीं देखते हैं। दूसरे किस्म के लोग कम ही होते हैं।

दूसरों में कोई बुराई न देखने वाले लोग महापुरुष या संत श्रेणी में आते हैं। इस संदर्भ में एक प्रेरक प्रसंग बताता हूं। एक गुरुकुल में एक छात्र बहुत मेधावी था। गुरु जी उसकी प्रतिभा और मेहनत से बहुत प्रसन्न थे। जब उसकी शिक्षा पूर्ण हुई, तो उसके गुरु ने एक अनोखा दर्पण देते हुए कहा कि तुम इससे किसी के भी मनोभाव जान सकते हो। उस दर्पण को पाकर छात्र बहुत प्रसन्न हुआ।

उसने सोचा कि इसका परीक्षण गुरु पर ही कर लूं। उसने उस दर्पण का मुंह गुरु जी की ओर कर दिया। उसने पाया कि गुरु जी में तो क्रोध, मोह, मद और अहंकार कूट-कूटकर भरा है। यह देखकर वह विचलित हो गया। उसने कुछ कहा नहीं और अपने घर पहुंचा, तो उसने अपने माता-पिता, भाई बहन आदि में भी अवगुण पाए। उसके घर वाले भी लोभ, मोह, अहंकार और ईर्ष्या आदि गुणों की खान निकले। अब उस छात्र की नींद हराम हो गई। जो भी उससे मिलता, वह अपने दर्पण से सबके मनोभाव जान लेता। आखिरकार, वह गुरु जी के पास पहुंचा और बोला, मैंने आप सहित सारे लोगों में अवगुण ही पाए हैं। इस पर गुरुजी ने दर्पण का मुंह शिष्य की ओर कर दिया। उसमें भी ढेर सारे अवगुण देखने को मिले। तब गुरु जी ने कहा कि मैंने यह दर्पण दूसरों के नहीं, अपने अवगुणों को देखने के लिए दिया था, ताकि तुम अपने दोष दूर कर सको। यह सुनकर छात्र ने अपने दोषों को दूर करने का वचन दिया और चला गया।

-अशोक मिश्र

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