अगर हम किसी का भला सोचते हैं, यकीनन हमारे साथ भला ही होता है। किसी को नुकसान पहुंचाने की सोच रखने वाला व्यक्ति कभी सुखी और फायदे में नहीं रह सकता है। यही जीवन का सच है। हमें भले ही लगता हो कि हमने किसी को नुकसान पहुंचाकर अपना फायदा कर लिया, लेकिन कालांतर में ऐसा होता नहीं है। इस संबंध में एक प्रेरणादायक कथा याद आ रही है। किसी राज्य का राजा अपने देश के एक व्यापारी से बहुत नाराज हो गया।
उसने उस व्यापारी को मौत की सजा सुना दी। व्यापारी ने कोई गुनाह नहीं किया था। इससे उसका आक्रोश उबल पड़ा। सिपाहियों ने व्यापारी को पकड़कर दरबार के एक कोने में खड़ा कर दिया। व्यापारी ने गुस्से में आकर राजा को भद्दी-भद्दी गालियां देनी शुरू कर दी। राजा ने एक मंत्री से पूछा कि वह व्यापारी क्या कह रहा है? मंत्री ने कहा कि वह व्यापारी आपको दुआएं दे रहा है।
वह कह रहा है कि वे लोग कितने अच्छे होते हैं, जो अपने क्रोध को पी जाते हैं और दूसरों को क्षमा कर देते हैं। यह सुनकर राजा ने अपने फैसले पर दोबारा विचार किया। उसे लगा कि जिसको मैंने मौत की सजा दी है, वह भी मेरे बारे में ऐसा विचार रखता है। इस पर राजा ने उस व्यापारी को क्षमा कर दिया।
उसे भी व्यापारी की उस समय की दशा देखकर दया आ गई थी। तभी दूसरे मंत्री ने राजा को बताया कि वह व्यापारी आपको गालियां देर हा था, महाराज। इस पर राजा को गुस्सा आ गया। उसने कहा कि मुझे पहले वाले मंत्री की बात इसलिए अच्छी लगी क्योंकि उसके झूठ में भी दूसरे की भलाई छिपी हुई थी। व्यापारी की गालियां मुझे भी सुनाई दे रही थी। लेकिन तुमने ईर्ष्यावश यह बता बताई है। तुम्हें इस दरबार से निकाला जाता है। तुम यहां रहने के काबिल नहीं हो
-अशोक मिश्र