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जीर्णोद्धार की राह देखती महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली

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अशोक मिश्र
सिद्धार्थ यानी महात्मा बुद्ध अर्थात तथागत ने जब लोक कल्याण के लिए घर और परिवार का त्याग किया था, तब उन्होंने यह नहीं सोचा था कि एक दिन उनका व्यक्तित्व और कृतित्व पूरी दुनिया को शांति और सद्भाव की शिक्षा देगा। उसके नाम पर दुनिया भर में मंदिर बनाए जाएंगे। 563 ईस्वी पूर्व नेपाल की तराई क्षेत्र में स्थित लुंबिनी में गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। उनकी मां महामाया अपने बच्चे को जन्म देने के लिए अपने नैहर यानी मायके जा रही थीं, लेकिन रास्ते में ही प्रसव वेदना उठने की वजह से उन्हें लुंबिनी में ही अपने बेटे को एक पत्थर पर जन्म देना पड़ा। जिस स्थान और पत्थर पर तथागत का जन्म हुआ था, उस स्थान पर नेपाल की तराई में बसे लुंबिनी में महामाया देवी मंदिर बना हुआ है। यह मंदिर नेपाल की कमाई का एक बेहतरीन जरिया है। एक अनुमान के मुताबिक हर साल लगभग दस लाख से अधिक विदेशी पर्यटक महामाया मंदिर में दर्शन करने आते हैं।
जिस महात्मा बुद्ध के जीवन से प्रेरणा लगभग पूरी दुनिया लेती है, दुनिया के कई देशों में जहां महात्मा बुद्ध को भगवन की तरह पूजा जाता है, उस महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली पर बना हुआ महामाया मंदिर यूनेस्को की संकटग्रस्त विश्व धरोहर स्थल की श्रेणी में आने वाला है। बीबीसी की एक रिपोर्ट बताती है कि महामाया मंदिर में गर्मियों के दिनों में जाने पर वहां लोगों का दम घुटने लगता है। मंदिर में आक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है जिसकी वजह से लोग ज्यादा देर तक वहां ठहर नहीं पाते हैं। इसी मंदिर में वह चट्टान भी रखी हुई है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसी पत्थर पर गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। आप कल्पना करके देखिए कि महात्मा बुद्ध ने अपने समयकाल में कितना बड़ा त्याग किया था। वह भी किसके लिए, सामान्य जन के लिए। राजकुमार सिद्धार्थ शाक्य गणराज्य के सबसे शक्तिशाली राजा शुद्धोधन के पुत्र थे। वैभव और विलास की कोई इंतहा नहीं थी। उस समय की सबसे सुंदर राजकुमारी यशोधरा से उनका विवाह हुआ था। आज जब लोग जमीन के एक टुकड़े के लिए अपने भाई, पिता, बहन जैसे रक्त संबंधी को मौत के घाट उतारने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं, ऐसे में अत्यंत वैभवशाली राज्य के भावी शासक राजकुमार सिद्धार्थ ने सिर्फ इसलिए राजपाट त्यागकर कंटक मार्ग चुना कि वह पता लगा सकें कि दुख क्यों है? इसका निदान क्या है?
सिर्फ मानव कल्याण के लिए इतना बड़ा त्याग करने वाला व्यक्ति पूरी दुनिया के इतिहास में शायद दूसरा कोई नहीं मिलेगा। महात्मा बुद्ध जीवन पर्यंत दूसरों के दुख से दुखी रहे और उसके शमन का मार्ग तलाशते रहे। अंत में एक बात उन्हें अच्छी तरह से समझ में आ गई थी कि इंसान की ज्यादातर समस्याओं के मूल में निजी संपत्ति है। यही वजह है कि जब उन्होंने संघ बनाया, तो उसमें किसी की निजी संपत्ति का प्रावधान नहीं रखा। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध का जन्म लिच्छवी जाति की शाक्य शाखा में हुआ था। वहीं महावीर स्वामी का जन्म लिच्छवी जाति की वैशाली वाली शाखा में हुआ था। लिच्छवी लोग व्रात्य क्षत्रिय कहे जाते हैं।
ऐसे महापुरुष की जन्म स्थली पर बना महामाया मंदिर आज अव्यवस्था का शिकार है। इस मंदिर के आसपास लगी फैक्ट्रियां, गाड़ियों की भरमार ने महामाया मंदिर को संकटग्रस्त कर दिया है। प्रदूषण के चलते मंदिर के आसपास लगे पेड़-पौधे मुरझा रहे हैं। नेपाल सरकार की लापरवाही के चलते मंदिर की ईंटें भी खराब हो रही हैं। मंदिर के नीचे से पानी आ रहा है जिसकी वजह से मंदिर को खतरा पैदा हो गया है। मंदिर के आसपास इतनी ज्यादा दुकानें खुल गई हैं। आवागमन के साधान मुहैया होने से गाड़ियों का अजस्र प्रवाह बारहो महीने बना रहता है। वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इस बौद्ध मंदिर पर साफ दिखाई देने लगा है। यदि नेपाल सरकार लापरवाही न बरतती तो इस ऐतिहासिक मंदिर की यह दुर्दशा न होती। अब भी समय है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार करके बचाया जा सकता है। यदि नेपाल सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया, तो निकट भविष्य में पर्यटन पर बुरा प्रभाव पड़ना तय है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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