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महात्मा गांधी ने क्रोध न करने की दी सलाह
अशोक मिश्र

महात्मा गांधी कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली और प्रसिद्ध नेता थे। वह इंग्लैंड से बैरिस्टर की डिग्री लेकर आने के बाद साउथ अफ्रीका चले गए। वहां कई बरस रहने और साउथ अफ्रीका में चल रहे स्वाधीनता संग्राम में अहिंसा के सिद्धांत का सफल प्रयोग करने के बाद जब भारत आए, तो वह कांग्रेस के कार्यक्रमों में शामिल होने लगे। धीरे-धीरे मोहनदास करमचंद गांधी का राजनीतिक कद बढ़ने लगा और एक दिन वह कांग्रेस के सर्वमान्य नेता बन गए। बात कांग्रेस के वर्धा अधिवेशन की है। वह वर्धा अधिवेशन में भाग लेने के लिए रेल गाड़ी के तीसरे दर्जे के डिब्बे में यात्रा कर रहे थे। बता दें कि 8 अगस्त 1942 को मुंबई के वर्धा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में ही गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा दिया था और देश की जनता से करो या मरो का आह्वान किया था। जब गांधी जी रेल के डिब्बे में बैठे थे, तो उनके साथ चल रहे कांग्रेस कार्यकर्ता उनके सामने अपनी समस्याएं रखते और गांधी जी उसको दूर करने का उपाय बताते। तभी एक कार्यकर्ता ने गांधी जी से कहा कि मुझे क्रोध बहुत आता है। मैं कई बार क्रोध न करने की बात सोचता हूं, लेकिन अपने को क्रोध करने से रोक नहीं पाता हूं। जब क्रोध ठंडा होता है, तो मैं बहुत पछताता हूं। गांधी जी ने उस कार्यकर्ता से कहा कि अभी क्रोध करके दिखाओ। तो कार्यकर्ता ने कहा कि अभी कैसे दिखा सकता हूं। तब गांधी जी बोले कि इसका मतलब क्रोध करना तुम्हारी प्रवृत्ति नहीं है। जो तुम्हारी प्रवृति में नहीं है, उसे तुम अपने ऊपर हावी क्यों होने देते हो। यदि क्रोध करना तुम्हारी प्रवृत्ति होती तो अभी क्रोध करके दिखा देते। यह सुनकर उस कार्यकर्ता को गांधी जी की बात समझ में आ गई। उसने भविष्य में क्रोध न करने का फैसला किया।

अशोक मिश्र

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