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महात्मा गांधी: सत्य और अहिंसा के पुजारी

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एक महान आत्मा का जन्म
महात्मा गांधी, जिनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत रहे हैं। उन्हें “बापू” और “राष्ट्रपिता” जैसे उपनामों से भी जाना जाता है। गांधीजी का जीवन सत्य, अहिंसा और समाज सेवा की अद्वितीय मिसाल प्रस्तुत करता है।

सत्याग्रह: संघर्ष का नया स्वरूप

गांधीजी ने “सत्याग्रह” का सिद्धांत पेश किया, जिसका अर्थ है सत्य के लिए अडिग रहना। यह आंदोलन ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अहिंसात्मक प्रतिरोध का एक तरीका था। 1917 में चंपारण और 1920 में खिलाफत आंदोलन के दौरान, उन्होंने इस सिद्धांत को सफलतापूर्वक लागू किया, जिससे लाखों लोगों को एकजुट किया।

गांधीजी का मानना था कि अहिंसा ही सबसे बड़ा बल है। उनका यह सिद्धांत न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए महत्वपूर्ण था, बल्कि विश्वभर में मानवाधिकार और शांति के आंदोलनों को भी प्रेरित किया। उन्होंने हमेशा कहा, “आंख के बदले आंख लेने से पूरी दुनिया अंधी हो जाएगी।

महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व

गांधीजी के नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण आंदोलन हुए:

  • नमक सत्याग्रह (1930): दांडी यात्रा के दौरान उन्होंने नमक कानून का उल्लंघन कर ब्रिटिश राज के खिलाफ विद्रोह किया।
  • असहमति आंदोलन (1920-22): उन्होंने असहयोग का आह्वान किया, जिसमें भारतीयों ने सरकारी सेवाओं और कॉलेजों का बहिष्कार किया
  • भारत छोड़ो आंदोलन (1942): यह स्वतंत्रता संग्राम का एक निर्णायक क्षण था, जब उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य से तत्काल बाहर जाने की मांग की।

विरासत: प्रेरणा का स्रोत

महात्मा गांधी की शिक्षाएं आज भी प्रासंगिक हैं। उनके सिद्धांतों ने न केवल भारत, बल्कि विश्वभर के मानवाधिकार और शांति के आंदोलनों को प्रभावित किया। उनके विचारों को मान्यता देते हुए, संयुक्त राष्ट्र ने 2 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।

महात्मा गांधी की जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि सत्य और अहिंसा की शक्ति से किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है। उनकी विचारधाराएं आज भी हमें एक बेहतर समाज के निर्माण की प्रेरणा देती हैं। इस गांधी जयंती पर, हम उनके आदर्शों को अपनाने का संकल्प लें और एक सशक्त, समान और शांतिपूर्ण समाज की ओर बढ़ें।

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