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महात्मा गांधी ने की  कुष्ठ रोगी की सेवा

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बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
मोहन दास करमचंद गांधी यानी महात्मा गांधी ने अपने जीवन का सार सत्य, अहिंसा और छुआछूत का विरोध मान लिया था। यही वजह है कि वह आजीवन अपने सत्य पर अटल रहे। अहिंसा को उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक हथियार की तरह उपयोग किया। उन्होंने अछूतों को हरिजन कहकर उन्हें सबके समान माना और हमेशा समता का व्यवहार किया। वह अपने जीवन में इन नियमों का हमेशा पालन करते रहे। महात्मा गांधी ने यह सारी बातें अपनी जीवन ट्रुथ विद एक्सपेरिमेंट यानी सत्य के प्रयोग में भी लिखा है। उन्होंने तो हरिजन नाम से अखबार भी निकाला था। बात उन दिनों की है, जब वह बिहार के चंपारण में सत्याग्रह आंदोलन कर रहे थे। उनके सत्याग्रह में किसी भी जाति, धर्म और वर्ण का व्यक्ति शामिल हो सकता था। उनके सत्याग्रह में एक व्यक्ति ऐसा भी शामिल था जिसे कुष्ठ रोग हो गया था। उसके पैर में सूजन आ गई थी। उससे मवाद भी बहता रहता था। उसने अपने पैर में कपड़ा लपेट लिया था। आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी बहुत तेज चलते थे। वैसे भी वह सामान्यत: तेज चलते थे। कुष्ठ रोगी ठीक से चल नहीं पा रहा था। धीरे-धीरे वह पीछे छूटता चला गया। उसके पैर में बंधा कपड़ा भी निकल गया था। नतीजा यह हुआ कि वह थककर एक पेड़ के नीचे बैठ गया। शाम को जब प्रार्थना होने लगी, तो महात्मा गांधी ने कुष्ठ रोगी के बारे में पूछा, तो लोगों ने सच्ची बात बताई। महात्मा गांधी उसी समय एक लालटेन लेकर उसे खोजने निकले। एक पेड़ के नीचे वह बैठा मिला। गांधी ने अपनी चादर से कपड़ा फाड़ा और उस रोगी के पैर में बांध दिया। उसे सहारा देकर कमरे में लाए। उसके घाव पोछे। मरहम पट्टी की। इसके बाद प्रार्थना सभा हुई।

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