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चीन की शह पर भारत से संबंध बिगाड़ने पर तुला मालदीव

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मालदीव में ‘इंडिया आउट’ का नारा लगाकर नवंबर में राष्ट्रपति बने मोहम्मद मोइज्जू ने चीन से लौटते ही फरमान जारी कर दिया है कि भारतीय सैनिक 15 मार्च तक मालदीव छोड़ दें। मालदीव में 88 भारतीय सैनिक इस समय मौजूद बताए जाते हैं। मालदीव सरकार ने मोइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद से जो रवैया अख्तियार किया है, उसके पीछे चीन की शह मानी जा रही है। वैसे भी चीन की पांच दिवसीय यात्रा से लौटते ही राष्ट्रपति मोइज्जू ने भले ही भारत का नाम न लिया हो, उनका यह कहना कि उनका देश छोटा हो सकता है लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं कि उन्हें हमें धौंस देने का लाइसेंस मिल गया है।

दरअसल, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू पहले से ही भारत विरोधी विचारों को व्यक्त करते रहे हैं। दशकों से मालदीव की परंपरा रही है कि जो भी व्यक्ति वहां राष्ट्रपति चुना जाता था, वह सबसे पहले भारत की यात्रा करता था। मोइज्जू ने इस परंपरा को तोड़कर सबसे पहले चीन की यात्रा की। पिछले दिनों मालदीव के तीन मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ जिस तरह के बयान दिए और सोशल मीडिया पर अपनी पोस्ट डाली, उसकी बड़ी तीखी प्रतिक्रिया भारत में हुई। होनी भी चाहिए थी। दिखाने के लिए भले ही मालदीव सरकार ने अपने तीन मंत्रियों को हटा दिया हो, लेकिन सरकार के तेवर बता रहे हैं कि वह चीन की शह पर भारत से अपने संबंध खराब करने को उतावला हो रहा है।

अपनी पांच दिवसीय चीन यात्रा के दौरान मोइज्जू ने विभिन्न क्षेत्रों में लगभग बीस समझौते चीन से किए हैं। चीन मालदीव में 13 करोड़ अमेरिकी डालर निवेश करने को भी तैयार हो गया है। इस फंड का  उपयोग वहां की सड़कों को सुधारने और अन्य क्षेत्रों में किया जाएगा। दोनों देशों ने हुलहुमाले में एक एकीकृत पर्यटन क्षेत्र विकसित करने से जुड़े समझौते पर भी हस्ताक्षर किया है, जिसके लिए चीन पांच करोड़ अमेरिकी डॉलर की मदद देगा। इसके अलावा चीन विलिमाले में 100 बेड के एक अस्पातल के लिए भी अनुदान देगा।

माले में भारत की मदद के बनाए गए इंदिरा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल (आईजीएमएच) को देश में सबसे बड़ा माना जाता है। 300 बेड का ये अस्पताल 1992 में भारत की मदद से बनाया गया था। बाद में 2018 में एक बार फिर भारत की मदद से इस अस्पताल में आधुनिक सेवाओं का विस्तार किया गया। मालदीव की ज्यादातर आबादी आज भी इस अस्पताल में अपना इलाज कराती है। इसके बावजूद यदि मालदीव ने चीन के साथ जाने का फैसला किया है, तो उसका यह कदम भविष्य में आत्मघाती सिद्ध हो सकता है। चीन का यह इतिहास रहा है कि वह पहले आर्थिक सहायता या पूंजी निवेश के नाम छोटे-मोटे देशों के बाजार में प्रवेश करता है। उसके बाद उसके संसाधनों का उपयोग अपने हित में करता है। श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान जैसे तमाम देश इसके बेहतरीन उदाहरण हैं। मालदीव चीन का अगला शिकार है। इस बात को शायद मोइज्जू समझ नहीं रहे हैं। जब उनको यह बात समझ में आएगी तब तक बहुत देर हो जाएगी।

-संजय मग्गू

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