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HomeEDITORIAL News in Hindiमणिपुर मामले को समझदारी से सुलझाने की जरूरत

मणिपुर मामले को समझदारी से सुलझाने की जरूरत

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तीन महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद भी मणिपुर हिंसा की न तो आग ठंडी पड़ी है और न ही इसको लेकर की जाने वाली सियासत। केंद्र सरकार अपने नजरिये से मुद्दे को देख रही है, तो विपक्षी दल अपने हितों के हिसाब से। अब तो इस मामले में सुप्रीमकोर्ट ने भी दखल दे दिया है। केंद्र और राज्य सरकार को राहत और पुनर्वास के मामले में सक्रिय न होते देखकर सुप्रीमकोर्ट को दखल देना पड़ा। अब उसने 42 विशेष जांच दल के गठन का आदेश देकर मामले को अपने हाथ में ले लिया है। पिछले महीने 19 जुलाई को जब तीन युवतियों को नग्न घुमाए जाने का वीडियो वायरल हुआ था, तभी सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि यदि केंद्र सरकार ने इस मामले में कुछ नहीं किया, तो सुप्रीम कोर्ट मामले का स्वत: संज्ञान लेगी और अपने स्तर से जांच कराएगी। सुप्रीमकोर्ट ने तीन पूर्व महिला जजों की एक कमेटी बनाई है जो पूरे मामले पर नजर रखेगी और अपनी रिपोर्ट सुप्रीमकोर्ट को सौंपेंगी।’

एक तरह से देखा जाए, तो यह केंद्र और राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका है। अब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 जुलाई को तीन मणिपुरी महिलाओं को शर्मसार किए जाने की घटना पर प्रतिक्रिया देने के बाद कोई टिप्पणी नहीं की है। विपक्ष संसद में प्रधानमंत्री से बयान देने की मांग कर रहा है। प्रधानमंत्री की चुप्पी सचमुच इस मामले में आश्चर्यजनक है। मणिपुर में हिंसा की शुरुआत तीन मई को हुई थी जब वहां रैली निकाली गई थी। कई दशकों से मणिपुर में रहने वाली मैतोई समुदाय अपने को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग कर रहे थे।

इस संबंध में हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद से ही हिंसक आग भड़क उठी थी। प्रदेश में रहने वाले नगा और कुकी जनजाति के लोगों का आरोप है कि मणिपुर में बहुसंख्यक मैतोई लोग उनके पहाड़ों पर कब्जा करना चाहते हैं। कुकी और नगा लोग पूरे प्रदेश में पैंतीस से चालीस प्रतिशत हैं और वे ज्यादातर प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में निवास करते हैं। मणिपुर के पर्वतीय इलाके कई तरह के खनिज पदार्थों से समृद्ध हैं। आरोप है कि मैतोई समुदाय इन खनिज पदार्थों पर कब्जा करना चाहते हैं, लेकिन मैतोई इससे इनकार करते हैं। दरअसल, मणिपुर के मैतोई समुदाय के लोग हिंदू हैं और नगा-कुकी समुदाय के अधिकांश लोग ईसाई हैं।

प्रदेश में हालात इतने खराब हो गए हैं कि दोनों समुदाय आधुनिक हथियारों से लैस होकर एक दूसरे पर हमला कर रहे हैं। एकदूसरे के घरों, दुकानों आदि में आग लगा रहे हैं। मौका मिलने पर एक दूसरे समुदाय की महिलाओं की इज्जत से खिलवाड़ कर रहे हैं। तीन मई के बाद शुरु हुई हिंसा अब जातीय हिंसा का रूप लेती जा रही है। इस आग में पुलिस के लोग भी बंट गए हैं। असम राइफल्स के जवानों पर मैतोई और कुकी के पक्ष बंट जाने का आरोप लगाया जा रहा है। यदि मामले को गंभीरता से नहीं सुलझाया गया, तो यह भविष्य में देश के लिए नासूर बन सकता है।

संजय मग्गू

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