मणिपुर में तीन मई को हुई हिंसा के बाद जिस तरह कुकी समुदाय ने अलग प्रशासनिक व्यवस्था की मांग शुरू कर दी है, उसको देखते हुए अब यह डर सताने लगा है कि कहीं ऐसा तो नहीं, मणिपुर दो हिस्सों में बंटने जा रहा है। कुकी समुदाय की अलग प्रशासन व्यवस्था की मांग को देखते हुए नगा समुदाय ने भी अपना रुख तय करना शुरू कर दिया है। पिछले बुधवार को नगा समुदाय ने एक रैली निकाली जिसमें काफी संख्या में नगा समुदाय के लोगों ने भाग लिया। इन लोगों ने तख्तियों और बैनरों के माध्यम से मांग की कि नगा ध्वज, संविधान और एकीकरण नगा लोगों के अविभाज्य अधिकार हैं, फ्रेमवर्क समझौते को लागू करें, भारत सरकार को विभाजनकारी राजनीति बंद करनी चाहिए। नगा समुदाय के आगे आने के बाद से मणिपुर की स्थितियां और विषम हो गई हैं। मैतोई और कुकी समुदाय पहले से ही एक दूसरे के दुश्मन हो चुके हैं। दोनों समुदाय के लोग एक दूसरे के इलाके से आ जा नहीं सकते हैं।
मंत्रिमंडल से लेकर निचले स्तर तक की नौकरशाही तक दो खेमे में बंटी हुई दिखाई देती है। तीन मई से शुरू हुई हिंसा के बाद से अब तक मुख्यमंत्री एन बीरेंद्र सिंह कुकी इलाके में जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए हैं। ऐसे में अगर नगा समुदाय भी बीच में कूद पड़ा, तो हालात और भी बदतर हो जाएंगे। नगालैंड की मांग को लेकर वर्ष 1950 से ही सशस्त्र संघर्ष चल रहा है। आंदोलनकारी नगाओं की मांग है कि नगा लोगों को स्वायत्त क्षेत्र दिया जाए जिसमें मणिपुर, असम, अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ म्यांमार के नगा बहुल आबादी शामिल हों। अलगाववादी समूह एनएससीएन (आई-एम) और केंद्र के बीच ‘ग्रेटर नगालिम’ की मांग के साथ ही एक अलग ध्वज और नगाओं के लिए एक संविधान जैसी मांगों को लेकर मतभेद है।
ग्रेटर नगालिम का अर्थ है पूर्वोत्तर के जिन इलाकों में नगा आबादी बसी है उन सभी क्षेत्रों का एकीकरण। यही वजह है कि मणिपुर में बसे नगा जनजाति के लोग शांति वार्ता का शीघ्र निष्कर्ष निकालने की मांग कर रहे हैं। काफी लंबे समय तक चले आंदोलन और काफी रक्तपात के बाद पूर्वोत्तर राज्यों में शांति स्थापित की जा सकी है। ऐसे में यदि एक बार फिर यह आंदोलन भड़का तो हालात बेकाबू हो सकते हैं। नगा समुदाय के नेताओं का कहना है कि मणिपुर में 20 नगा जनजातियां हैं। सरकार कुकी और मैतोई के बीच विवाद सुलझाने के लिए कोई फैसला करती है, तो नगा समुदाय के हित और उनकी मांग प्रभावित नहीं होनी चाहिए। उसकी भूमि सुरक्षित रहनी चाहिए।
मैतोई और कुकी समुदाय के बीच जारी हिंसा के बीच नगा अब तक तटस्थ ही रहे हैं, लेकिन जब बात जनजाति और गैर जनजाति की होती है, तो नगा जनजाति कुकी समुदाय के साथ खड़ी नजर आती है। मणिपुर के कई जिलों में नगा और कुकी जनजाति की मिश्रित आबादी है। इनके बीच आपसी कोई मतभेद नहीं है। नगा शांति वार्ता को 26 साल हो गए हैं। यदि भारत सरकार शांति वार्ता के मसले को सुलझाने में सफल हो जाती है, तो इससे कई समस्याएं हल हो सकती हैं। मामला काफी संवेदनशील है, इसलिए सरकार को बहुत संभल कर कदम उठाना होगा।
संजय मग्गू