संजय मग्गू
मैरिटल रेप यानी वैवाहिक दुष्कर्म का मामला सुप्रीमकोर्ट में इन दिनों विचाराधीन है। वैसे अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इंग्लैंड, कनाडा और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध माना गया है। हमारे देश में भी इस मामले पर सुप्रीमकोर्ट विचार कर रही है। यह सही है कि शरीर पर किसका हक होगा, यह तय करने का अधिकार स्त्री और पुरुष दोनों को है। लेकिन एशिया, यूरोप और अमेरिका जैसे देशों में विवाह संस्था का रूप हमारे देश से अलहदा है। हमारे देश में विवाह एक पवित्र संस्कार है। समाज में विवाह को लेकर एक मान्यता है। माना जाता है कि विवाह के लिए जोड़ियां ऊपर यानी भगवान तय करके भेजता है। यह भावना हमारे समाज में कहीं ज्यादा गहरे तक पैठ बना चुकी है। कई बार विपरीत परिस्थितियां होते हुए भी भारतीय महिलाएं और पुरुष अपना पूरा वैवाहिक जीवन जी लेते हैं और अलग होने की नहीं सोचते हैं। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। महिलाएं और पुरुष सामन्जस्य न बैठने पर अदालत की चौखट तक आकर तलाक की गुहार लगा रहे हैं। ऐसी स्थिति में यदि मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया जाता है, तो सबसे पहले सवाल यह उठेगा कि सुबूत क्या है? सिर्फ महिला के बयान पर ही पति को सजा दे दी जाएगी? या फिर अन्य आपराधिक मामलों की तरह जांच की जाएगी। जब बेडरूम में सिर्फ पति-पत्नी ही होते हैं, तो फिर किसी गवाह के होने की दूर-दूर तक कोई गुंजाइश ही नहीं है। ऐसी स्थिति में पति को किस आधार पर सजा दी जाएगी। इस मामले का एक सामाजिक और आर्थिक पहलू भी है। समाज में महिला की स्थिति एक तरह से अविश्वसनीय हो जाएगी। समाज की संकीर्ण सोच जब बलात्कार पीड़िता को ही दोषी मानने का आदी हो, तो उस समाज में पत्नी की क्या दशा होगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। यदि पति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उस परिवार में सिर्फ पति ही कमाने वाला हुआ, तो फिर परिवार का खर्च कैसे चलेगा। यह कोई दो-चार दिन में फैसला सुना देने वाला मामला तो है नहीं। हिंदुस्तान की अदालतों में जब लाखों मामले कई सालों से लंबित पड़े हैं, ऐसी स्थिति में मैरिटल रेप मामले की जल्दी सुनवाई होगी, ऐसा लगता नहीं है। चार-पांच साल जेल में रहने के बाद यदि सुनवाई भी शुरू हुई और पति निर्दोष साबित हुआ तब क्या होगा? इस दौरान पत्नी और उसके बच्चों का भरण-पोषण कैसे होगा? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में विवाह संस्था के बिखर जाने की जो आशंका जाहिर की है, वह किसी हद तक सही है। ऐसे यह उम्मीद की जानी चाहिए कि सुप्रीमकोर्ट इस मामले में कोई ऐसा रास्ता निकालेगा कि महिला की अपनी गरिमा और इज्जत भी बची रहे। भले ही पति हो, लेकिन वह भी उसका यौन शोषण न कर पाए और विवाह संस्था और परिवार बिखरने न पाए। सुप्रीमकोर्ट ही इस बारे में कोई राह दिखा सकता है, यह भी सही है।
संजय मग्गू