संजय मग्गू
घर जहां आपने जीवन के अनमोल वर्ष गुजारे, जहां से आपके जीवन की कुछ खट्टी-मीठी यादें जुड़ी हैं। घर जहां आप पैदा हुए, आपने रिश्तेदारों, मित्रों और परिजनों के साथ अच्छे बुरे दिन बिताए। यदि जीवन के किसी मोड़ पर आकर उस घर को छोड़ना पड़े या उस गांव-शहर को छोड़ना पड़े अथवा उस देश को ही छोड़ना पड़े जिसमें आपका घर हो, तो कितनी पीड़ा होगी। मजबूरी में आपको परिवार सहित अपना सब कुछ छोड़कर खाली हाथ उस देश में रहने के लिए जाना पड़े, जो आपके लिए नितांत अजनबी हो, तो आपका कलेजा दुख से फट जाएगा। आप जिस देश में जा रहे हैं, उस देश में भी सुकून मिलेगा, इसकी भी कोई गारंटी नहीं है। कल्पना करके देखिए, जब भारत-पाक विभाजन हुआ था, तो लाखों लोगों को अपना घर बार छोड़कर भारत या पाकिस्तान आना-जाना पड़ा था। परिवार के सात-आठ लोग सब कुछ छोड़कर भारत या पाकिस्तान के लिए चले थे और अंत में दो या तीन लोग ही गंतव्य तक पहुंचे, बाकी लोग रास्ते में मार दिए गए। यह विस्थापन पूरी दुनिया का शायद सबसे बड़ा विस्थापन था। आज भी कुछ देशों में हालात ऐसे ही बन रहे हैं। इजरायल और लेबनान के बीच छिड़े युद्ध के चलते हजारों लाखों लोग सीरिया की ओर पलायन कर रहे हैं। वैसे सीरिया में भी रहना, सुरक्षित नहीं है इन पलायन करने वाले लोगों के लिए क्योंकि सीरिया भी इजरायल के निशाने पर है। आज नहीं, तो कल यह भी चपेट में आएगा ही। असल में युद्ध जिन जिन इलाकों में चल रहा है, वहां मौत का तांडव हो रहा है। कब कहां से चली गोली उन्हें अपना निशाना बना ले, कब कौन सी मिसाइल उनके घर को नेस्तनाबूत कर दे, कब कौन सा तोप का गोला उनके चिथड़े उड़ा दे, कुछ पता नहीं है। युद्धरत लोगों को इससे कोई मतलब नहीं है कि उनके द्वारा चलाई गई गोली से किसकी मौत हो रही है, उनकी मिसाइलें किसके घर पर गिर रही हैं, उन्हें तो अपने दुश्मन को सिर्फ सबक सिखाना है। रूस-यूक्रेन, इजरायल-गजा-लेबनान और ईरान के बीच सीधा या छद्मयुद्ध करोड़ों लोगों के विस्थापन का कारण बन रहा है। जिन्होंने अपने जीवन भर की खून-पसीने की कमाई से एक घर खड़ा किया है, वह देशों या आतंकी समूहों की कार्रवाई के चलते छिड़े युद्ध में तबाह हो जाए, तो दुख अवश्य होगा। उस पर उन्हें अपनी जान बचाने के लिए घर-बार छोड़कर दूसरी जगह शरण लेनी पड़े, तो स्वाभाविक रूप से दुख से छाती फट जाएगी। वर्तमान समय की त्रासदी यह है कि मध्य पूर्व एशिया और दक्षिम अफ्रीका के कुछ देशों में या तो युद्ध चल रहा है या फिर गृहयुद्ध। दोनों ही दशाओं में करोड़ों लोग वहां से भागने को मजबूर हैं। और यह सब कुछ सिर्फ जिंदा रहने के लिए करना पड़ रहा है। इसके बाद भी वे जिंदा रह पाएंगे, चैन से बाकी जीवन गुजार पाएंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। यही आज के समय की सबसे बड़ी विडंबना है।
संजय मग्गू