कैलाश शर्मा
बड़े पुण्य कर्मों से मानव जीवन प्राप्त होता है। इतना आसान भी नहीं है मानव जीवन पाना। मानव एकमात्र सामाजिक प्राणी है जो शेष सभी जीवों से श्रेष्ठ होने के कारण परस्पर एक-दूसरे के सुख -दु:ख में भागीदार बनता है। दूसरे का दुख बंटाना मानवीय स्वभाव है। सच्चे समाज सेवी वह होते हैं जो निस्वार्थ भाव से समाज सेवा करते हैं, अपने द्वारा किए गए श्रेष्ठ कार्यों का बखान नहीं करते हैं। इतना ही नहीं, समाज सेवा के बदले ना वह कोई नाम चाहते हैं और ना सम्मान। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सिर्फ नाम कमाने के लिए और अपने धन का प्रदर्शन करने के लिए ही समाजसेवा करते हैं। ऐसे लोग समाज में आजकल बहुतायत में पाए जाते हैं।
आज हर तरफ समाज सेवक और सामाजिक कार्यकर्ताओं की बाढ़ दिख रही है। ये तथाकथित समाजसेवी रंग-बिरंगे पोस्टर, बैनर, होर्डिंग लगवा कर अपने आपको सबसे बड़ा समाजसेवी प्रदर्शित कर रहे हैं। ये वे लोग हैं जिनका समाज सेवा से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं होता है। ये लोग अपने नाम के आगे या पीछे ‘गरीबों का मसीहा’ ‘जनता का रहनुमा’, ‘सच्चा समाजसेवी’ लिखवा कर समाज में अपनी पहचान बताते हैं। त्यौहार और विशेष दिवस पर बधाई, शुभकामनाएं के बैनर व बोर्डिंग लगवा कर हजारों रुपये खर्च करते हैं। इसके विपरीत ऐसे भी सच्चे मानव होते हैं जो निस्वार्थ भाव से रात दिन समाज सेवा के श्रेष्ठ कार्य करते हैं। जरूरतमंद व असहाय लोगों की मदद करते हैं जो स्वयं कष्ट सहकर भी समाजसेवा को अपना जनून बनाये हुए हैं।
समाज सेवा के बदले ना कोई नाम चाहते हैं और ना कोई सम्मान। यह सच्चे समाज सेवी ‘नेकी कर दरिया में डाल’ और ‘नर सेवा नारायण सेवा’ की भावना से श्रेष्ठ कार्य करते हैं। दरअसल, यही सच्ची समाज सेवा है। सहायता केवल रुपये पैसों से ही नहीं होती है बल्कि कभी-कभी आपका साथ, आपका एक प्यार भरा स्पर्श और कुछ तसल्ली भरे शब्दों से भी किसी की मदद हो जाती है। आप मुसीबत से घिरे किसी इंसान की आर्थिक मदद नहीं कर पा रहे हैं, तो भी आपका उसके साथ बने रहना भी उसके लिए काफी मददगार हो सकता है। हर जरूरतमंद इंसान की सहायता करना निश्चित ही हमारे बस में नहीं होता है, पर जितना हमारे हाथ में है, उतना तो हम कर ही सकते हैं।
किसी की सेवा सहायता करने पर हमेशा ईश्वर का धन्यवाद करें कि उसने हमें किसी की सहायता करने लायक बनाया है। हमारे अंदर सेवा और सहायता करने का जज्बा हमेशा कायम रहना चाहिए। कोई भी सेवा व मदद करने के बदले कभी भी मान सम्मान पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। पहले होता था कि नेकी कर दरिया में डाल। अब होता है कि नेकी कर, फोटो खींच, फेसबुक पर डाल। ऐसी सेवा नहीं रखनी चाहिए। ऐसी सेवा निस्वार्थ भाव से की गई सेवा नहीं कहलाती और ना ऐसी सेवा से कोई पुण्य मिलता है। आप किसी की मदद इस प्रकार करें जैसे वह आपका फर्ज हो। होना यह चाहिए कि दाएं हाथ से दान करें तो बाएं हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए कि दाएं ने क्या दिया। दुनिया में सबसे ज्यादा खुश वही हैं जो दानी हैं और निस्वार्थ भाव से सभी की सेवा सहायता करते हैं। समाज सेवा में लगे दानी सज्जनों को एक बात जरूर समझनी चाहिए और करनी भी चाहिए कि अगर उनके परिवार में, रिश्तेदारी में कोई बुजुर्ग व अन्य सदस्य जैसे भाई-बहन, भतीजा भतीजी, भांजा भांजी आदि आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं उन्हें मदद की बहुत जरूरत है तो उनके बिना मांगे सबसे पहले उनकी हर संभव मदद करनी चाहिए। बाद में समाज के अन्य जरूरतमंदों की सेवा सहायता करनी चाहिए। जो लोग ऐसा करते हैं वे ही वास्तव में सबसे श्रेष्ठ व सच्चे समाजसेवी और दानी सज्जन होते हैं।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
नेकी कर, फोटो खींच और फेसबुक पर डाल
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