कैलाश शर्मा
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघचालक मोहन भागवत ने पुणे में ‘हिंदू सेवा महोत्सव’ के उद्घाटन के दौरान एक बार पुन: कहा कि हर मस्जिद में मंदिर ढूंढना, उसके लिए आंदोलन करना उचित नहीं। हमें दुनिया को दिखाना है कि हम एक साथ रह सकते हैं, हमारे यहां हमारी ही बातें सही, बाकी सब गलत, यह चलेगा नहीं। उन्होंने कहा कि हर धर्म और दूसरे के देवी-देवताओं का सम्मान करना चाहिए। भारत में सभी को एक साथ रहना चाहिए और यही भारत की संस्कृति सिखाती है। इस देश की परंपरा ही ऐसी है। बस आपस में अच्छे से रहो, नियम-कानून मानकर चलते रहो। वर्चस्ववाद, कट्टरवाद को भूलकर हम सबको भारत की समावेशी संस्कृति के तहत एकजुट हो जाना चाहिए और भारत को विश्व गुरु और विकसित देश बनाने में सहयोग देना चाहिए।
इस वक्त जब देश में हिन्दू पक्ष द्वारा मथुरा, काशी, संभल, अजमेर दरगाह में पहले मंदिर होने के जो दावे किए जा रहे हैं और इनके सर्वे की मांग हो रही है, ऐसे समय भागवत का यह बयान काफी मायने रखता है। इससे पहले भी मंदिर मस्जिद विवाद पर 2022 में नागपुर में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के समापन समारोह पर मोहन भागवत ने कहा था कि इतिहास वो है जिसे हम बदल नहीं सकते। इसे न आज के हिंदुओं ने बनाया और न ही आज के मुसलमानों ने। यह उस समय घटा, अब हर मस्जिद में मंदिर ढूंढना, उसके लिए आंदोलन करना उचित नहीं। मंदिर मस्जिद को लेकर आरआरएस अब कोई आंदोलन नहीं करेगा। संघ प्रमुख ने कहा कि हमें हर मुसलमान को दुश्मन की तरह नहीं देखना चाहिए। जो लोग यहां हैं वो भारतीय हैं।
हमारी नजर में मोहन भागवत के बयान का मतलब यही है कि कि मस्जिदों, ऐतिहासिक इमारतों के हिंदू अतीत को लेकर अब जो विवाद, प्रदर्शन, आंदोलन चल रहा है, वे उसका समर्थन नहीं कर रहे हैं। अब प्रश्न यह है कि देश समाज हित में मोहन भागवत की इन महत्वपूर्ण बातों को उनके ही संगठन के स्वयंसेवक, उनकी राजनीतिक शाखा भाजपा के नेता और कार्यकर्ता, तथाकथित हिन्दू, संगठन सम्मान व समर्थन क्यों नहीं कर रहे हैं ? और क्यों मस्जिदों, ऐतिहासिक इमारतों के हिंदू अतीत को लेकर अदालतों में याचिकाएं डाली जा रही हैं। कुतुब मीनार, जामा मस्जिद, ताजमहल के अतीत को लेकर बहस चल रही है। बहस ये भी चल रही है कि 400, 500, 600 साल या उससे और पहले किसने कितने मंदिर तोड़े और क्यों तोड़े इसकी जांच की जाए। यहां यह बात गौर करनी चाहिए कि राजनीतिक कारणों से वोटों की खातिर ही सही एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मुस्लिम धर्मगुरुओं, इमामों, पसमांदा मुसलमानों के सम्मेलन में मुख्य अतिथि बनकर मुस्लिम समाज का कल्याण करने की बात कह रहे हैं। उनको अपने सरकारी निवास पर बुलाकर उनकी आवभगत कर रहे हैं, उनका सहयोग मांग रहे हैं तो दूसरी ओर उनके ही मंत्रिमंडल के कई मंत्री, भाजपा के कई नेता अपने बयानों से हिंदू मुस्लिम विवाद को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं। हम मानते हैं कि मुस्लिम समाज में भी कई ऐसे कट्टर नेता व लोग हैं जो कट्टरता अपनाए हुए हैं और अपने कार्यों व बयानों से हिंदू मुस्लिम एकता व भाईचारे को कायम नहीं होने दे रहे हैं।
इनसे सभी को सावधान रहना चाहिए। एक ओर मोदी भारत को विकसित देश बनाने का सपना पाले हुए हैं और अपने इस सपने को पूरा करने में सभी का सहयोग व योगदान मांग रहे हैं तो दूसरी ओर कट्टरवादी लोग मंदिर-मस्जिद विवाद जीवित रखना चाहते हैं। य़ह किसी भी तरह से देश-समाज के हित में नहीं है। मंदिर-मस्जिद विवाद अब बहुत हो गया, यह खत्म होना चाहिए और सभी को मोहन भागवत की बातों का समर्थन करते हुए उनको मानना चाहिए।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
मंदिर-मस्जिद विवाद: भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में बाधा
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