‘मां’ शब्द दुनिया का सबसे मधुरतम शब्द है। इसके उच्चारण में जो मिठास है, लालित्य है, अपनत्व है, भरोसा है, एहसास है, वह किसी और शब्द में नहीं है। दुनिया की कोई भी सभ्यता और भाषा हो, सभी सभ्यताओं और भाषाओं में मां के रिश्ते को व्यक्त करने वाला हर शब्द सबसे पवित्रतम शब्द है। मां जन्म देती है, पालन पोषण करती है, अपने बच्चों पर सबसे ज्यादा हक मां का ही होता है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक मामले में कुछ ऐसे ही विचार व्यक्त करते हुए एक नाबालिग मां को बलात्कार की वजह से पैदा हुई बेटी को गोद देने का हक प्रदान किया है। हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि अवैध संतान को गोद देने के लिए सिर्फ मां की अनुमति ही काफी है। किसी मां के लिए अपने बच्चे को अलग करना यानी किसी को गोद देना, बहुत ही कष्टदायी होता है।
जिस बच्चे को नौ महीने तक अपने गर्भ में रखकर पाला पोसा, अपना जीवन संकट में डालकर जन्म दिया, उसे किसी को सौंपते समय मां का कलेजा जरूर विदीर्ण हो जाता है। लेकिन जो मां खुद अपने मां बाप की देखरेख में पलने को मजबूर हो, वह मातृत्व का बोझ कैसे सहन कर सकती है। इस मामले में हुआ यह था कि एक 13 साल की बच्ची से दुष्कर्म हुआ। इसके चलते वह गर्भवती हो गई। जब तक पता चला, तब तक 33 हफ्ते बीत चुके थे। अदालत ने उसे गर्भपात की इजाजत भी नहीं दी। नतीजा यह हुआ कि उसे बेटी को जन्म देना पड़ा।
यह भी पढ़ें : आप की रणनीति और विपक्षी राजनीति की अनिश्चितता
इस बीच बलात्कार करने वाले को बीस साल की सजा हो गई। उसकी बेटी को उसके कुछ रिश्तेदार गोद लेना चाहते थे, तो सात जून 2021 को सब रजिस्ट्रार को सभी दस्तावेज सौंपे गए, तो सब रजिस्ट्रार ने बॉयोलाजिकल पिता की अनुमति न होने का हवाला देते हुए गोद लेने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी। मामला अदालत में जाने पर हाईकोर्ट ने कहा कि बच्चे पर मां का सबसे पहले प्राकृतिक हक होता है। वह अपने बच्चे के संबंध में कोई भी फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है। समाज में बहुत सारी ऐसी लड़कियां हैं जो ऐसी ही विषम परिस्थितियों से गुजरती हैं।
किसी की दरिंदगी का शिकार हुई लड़कियों को समाज दोषी ठहराता है। वहीं अपराध करने वाला समाज में अपना सिर ऊंचा करके चलता है। यह स्थिति बदलनी चाहिए। जिस महिला या बच्ची के साथ बलात्कार हुआ है, उसमें महिला या बच्ची का क्या दोष है? यह समाज के लोगों को समझना चाहिए। हमारे देश में अगर कहीं कुछ गलत होता है, तो सबसे पहले महिलाओं पर ही अंगुली उठाने की कोशिश की जाती है। अफसोस की बात यह है कि इसमें कुछ महिलाएं भी शामिल होती हैं। ऐसी स्थितियां स्वस्थ समाज की निशानी तो कतई नहीं हैं। हमें इस संबंध में अपनी मानसिकता को बदलना होगा। सबसे पहले तो महिलाओं को दोयम दर्जे का समझना बंद करना होगा। उन्हें पुरुषों के समान अधिकार हासिल है, इसका एहसास दिलाना होगा, तभी बदलाव आएगा।
-संजय मग्गू
अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें : https://deshrojana.com/