संजय मग्गू
भारतीय संस्कृति में अगर किसी का दर्जा भगवान से भी ऊपर है, तो वह माता-पिता हैं। इसके बाद गुरु का दर्जा आता है। माता-पिता की अवहेलना, बुढ़ापे में उनका पालन पोषण न करना, अतिपातक (महापाप) माना जाता है। हमारे समाज में हर व्यक्ति के ऊपर तीन तरह के ऋण माने गए हैं। मातृ ऋण, पितृ ऋण और गुरु ऋण। वैसे तो राष्ट्र ऋण भी होता है, लेकिन व्यक्ति अपने जीवन में अपना और परिवार के निर्वाह के लिए जो भी कार्य करता है, उससे कहीं न कहीं राष्ट्र का भी विकास समाहित है, इसलिए उसके कार्य में ही राष्ट्र ऋण का भुगतान मान लिया जाता है। कहते हैं कि व्यक्ति मातृ, पितृ और गुरु ऋण में सिर्फदो ऋणों का ही भुगतान कर सकता है। स्त्री खुद किसी बच्चे को जन्म देकर मातृ ऋण और किसी बच्चे को पढ़ाकर या पढ़ने में सहायता देकर गुरु ऋण से मुक्ति पा सकती है, लेकिन वह किसी बच्चे का पिता नहीं बन सकती है, इसलिए पितृ ऋण उस पर बकाया रह जाता है। इसी तरह पुरुष मातृ ऋण नहीं चुका पाता है। हमारी संस्कृति में मां-बाप की सेवा से बढ़कर कोई दूसरा पुण्यकार्य नहीं माना गया है। जिसने अपने अपने माता-पिता की अवहेलना की उसको समाज अच्छी निगाह से नहीं देखता है। ऐसा ही एक मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में आया जिस पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि बूढ़ी और लाचार मां को गुजारा भत्ते के लिए तरसाना तकलीफदेह है। जब किसी महिला के बेटा पैदा होता है, तो मां-बाप उसका अपनी क्षमता और सामर्थ्य भर लालन पालन करते हैं। कोशिश करते हैं कि उनके बेटे को किसी प्रकार की कोई तकलीफ न हो। उनके मन में यही लालसा रहती है कि आज जिस बेटे का वह बड़े मनोयोग से पालन पोषण कर रहे हैं, जब वह बूढ़े और लाचार हो जाएंगे, तो उनका यही बेटा सहारा बनेगा। लेकिन जब यही बेटा पांच हजार रुपये महीना गुजारा भत्ता देने में भी आनाकानी करता है, तो मां का कलेजा पीड़ा से फट जाता है। जो मामला हाईकोर्ट पहुंचा था, उसमें महिला के पति की 1992 में मृत्यु हो गई थी। उसने अपने दो बेटों और एक बेटी का पालन-पोषण किया। कुछ समय बाद उसके एक बेटे की मौत हो गई। मृतक बेटे की पत्नी और उसके बच्चों को मजबूरन अपनी व्यवस्था अलग करनी पड़ी। महिला के पास पचास बीघे जमीन थी जिसे आधा-आधा दोनों बेटों और उनके बच्चों को मिल गई। बेटे ने अपनी मां को सिर्फ एक लाख रुपये देकर अपना पल्ला झाड़ लिया। नतीजन मां को अपनी विवाहित बेटी के पास रहने को मजबूर होना पड़ा। अब बेटे ने पांच हजार रुपये गुजारा भत्ता मां को न देना पड़े, इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। फैमिली कोर्ट ने गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था।
बूढ़ी और लाचार मां का पालन पोषण न करना महापाप के समान
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