उफ! अब भारतीय राजनीति का स्तर इतना गिर गया है कि संसद में एक सांसद दूसरे सांसद को ललकारते हुए अपमानजनक शब्दों का उपयोग करे और उसके पीछे बैठे हुए दूसरे सांसद मुस्कुराएं। कल दक्षिण दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने बसपा सांसद कुंवर दानिश अली को जो कहा, वह किसी भी तरह सभ्याचारण नहीं हो सकता है। यह राजनीतिक पतन की पराकाष्ठा है। अब सचमुच यह लगने लगा है कि संसद के बाहर नेतागण जो गंदगी फैलाते थे, वे अब संसद में फैलाने लगे हैं। हालांकि लोकसभा स्पीकर ओम बिडला ने सांसद बिधूड़ी को चेतावनी देते हुए दोबारा ऐसी बात न कहने की चेतावनी दी है। जो मामला संसद में हेट स्पीच का माना जाना चाहिए, जिसके लिए संसद की सदस्यता छीन ली जानी चाहिए, उसके लिए सिर्फ चेतावनी!
वहीं जब आम आदमी पार्टी के सासंद संजय सिंह और राघव चड्ढा विरोध प्रदर्शित करते हुए वेल तक आ जाते हैं, सवाल पूछते हैं, तो उनको निलंबित कर दिया जाता है। सच तो यह है कि कल संसद में हुई घटना संसद से बाहर होने वाली घटनाओं की प्रतिछाया मात्र है। आज देश का राजनीतिक और सांप्रदायिक माहौल इतना दूषित कर दिया गया है कि जिसके मन में जो आ रहा है, वह बेबाक बोलता जा रहा है। तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बेटे और मंत्री उदयगिरि स्टालिन सनातन धर्म के खिलाफ जो मन में आ रहा है, वह बोलते जा रहे हैं। इधर उत्तर भारत में धर्म संसद आयोजित किए जाते हैं, एक धर्म विशेष के लोगों को काटने, मारने की बात कही जाती है। उन्हें अपमानजनक तरीके से संबोधित किया जाता है, तब लोगों में इसकी कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है।
सुप्रीम कोर्ट बार-बार केंद्र और राज्य सरकारों को नोटिस भेजता है, उनसे जवाब मांगता है कि ऐसी घटनाएं क्यों घट रही हैं? इसका कोई जवाब नहीं मिलता है। ऐसा नहीं है कि इसके लिए सिर्फ एक ही पक्ष दोषी है, दोनों पक्ष समान रूप से सामाजिक और धार्मिक माहौल बिगाड़ने के दोषी हैं। यह सब कुछ एक सोची-समझी योजना के तहत हो रहा है। जाति, धर्म और संप्रदाय के नाम पर राजनीति करने वाले दल जानबूझकर ऐसी स्थिति पैदा करते हैं, ताकि वे इसका लाभ उठा सकें। मुद्दों पर राजनीति करना तो शायद अब कोई भी राजनीतिक दल नहीं चाहता है।
जिस देश की संसद में एक सांसद को चुनौती देते हुए उग्रवादी, आतंकवादी, मुल्ला और अन्य अपमानजक शब्दों से संबोधित किया जाए, उस संसद से अब अपेक्षा ही क्या की जा सकती है। इसी भारतीय लोकतंत्र के अभिन्न अंग जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, चौधरी चरण सिंह, चौधरी देवी लाल, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह जैसे लोग रहे हों, उसी लोकतांत्रिक व्यवस्था में भरी संसद में खुले आम अपमानजनक शब्दों का उपयोग किया जाए, तो इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या होगी?
स्व. वाजपेयी जी तो अक्सर कहा करते थे कि राजनीति में मतभेद होते हैं, मन भेद कतई नहीं। वे राजनीति में शुचिता के हिमायती थे। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सोचना तो कोई वाजपेयी जी से सीखे। उन्हीं वाजपेयी की पार्टी के सांसद का ऐसा शर्मनाक वक्तव्य, इसकी कतई उम्मीद नहीं थी।
संजय मग्गू