कल सुबह जब आप यह पढ़ रहे होंगे, उसके कुछ ही घंटे के बाद वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण संसद में केंद्रीय बजट पेश करेंगी। इस बजट से लोगों को इसलिए भी काफी उम्मीदें हैं क्योंकि यह चुनावी बजट होगा। अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि इस बार केंद्र सरकार मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बजट बढ़ाएगी। यदि वर्ष 2021 की बात करें तो उस साल केंद्र सरकार ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को 1.97 लाख करोड़ की वित्तीय सहायता देने की घोषणा की थी। तब उम्मीद जताई गई थी कि इससे देश में रोजगारों का सृजन होगा और बेरोजगार युवाओं की निराशा काफी हद तक कम होगी। घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने और नौकरियां पैदा करने की यह योजना पांच साल तक विभिन्न क्षेत्रों को पैसे देने के लिए थी।
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक पिछले दो सालों में इस योजना के तहत छह लाख से अधिक नौकरियां पैदा हुई हैं और उत्पादन 8.61 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। लेकिन इन सब प्रयासों के बावजूद देश में बेरोजगारी लगातार बढ़ती जा रही है। सौ-दो सौ पदों पर भर्ती के लिए निकलने वाले विज्ञापनों को देखकर हजारों युवा आवेदन कर रहे हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की होने वाली भर्ती के लिए भी स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारक युवा आवेदन कर रहे हैं। सरकार के ताजा लेबर फोर्स सर्वे के मुताबिक पिछले साल स्नातकों में बेरोजगारी सबसे अधिक 13.4 फीसदी थी। इसके बाद डिप्लोमा धारियों में 12.2 फीसदी और स्नातकोत्तर में 12.1 फीसदी बेरोजगारी थी।
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बेरोजगारी के ये चिंताजनक आंकड़े सड़कों पर भी नजर आ रहे हैं क्योंकि भारत के युवाओं में काम की तलाश की निराशा दिखाई दे रही है। अब युवाओं में घोर निराशा घर करती जा रही है। बीस से पैतालिस साल के काम करने की उम्र वाले लोगों ने तो अब नौकरी खोजना भी छोड़ दिया है। इसका कारण यह है कि मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में भी सबसे ज्यादा संगठित क्षेत्र पर ही ध्यान दिया गया है। देश में संगठित क्षेत्र केवल छह से सात फीसदी ही नौकरियां पैदा करता है। बाकी 93-94 फीसदी नौकरियां असंगठित कार्य क्षेत्र में पैदा होती हैं। सरकार का जितना ध्यान बड़ी-बड़ी कंपनियों को सहायता देने और उन्हें आवश्यक पूंजी उपलब्ध कराने में है,यदि उसका आधा भी असंगठित क्षेत्र को दिया गया होगा, तो शायद बेरोजगारी काफी हद तक नियंत्रित होती।
प्रख्यात अर्थशास्त्री अरुण कुमार का कहना है कि सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि योजनाओं को लागू करने के दौरान फोकस बदला जाए। हमें संगठित क्षेत्र की जगह असंगठित क्षेत्र को बढ़ावा देने की जरूरत है। यह योजना जो कर रही है, वह पूरी तरह से संगठित क्षेत्र के लिए लक्षित है। उम्मीद है कि चुनावी वर्ष में केंद्र सरकार ऐसी योजनाओं और कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देगी जिससे असंगठित क्षेत्र में रोजगार का सृजन हो। बेरोजगारों के लिए नई आशा की किरण लेकर आए, कल यानी एक फरवरी को पेश होने वाला हो केंद्रीय बजट। यदि बेरोजगारी पर अंकुश लगाने पर ध्यान नहीं दिया गया, तो युवाओं में बढ़ता आक्रोश विस्फोट का रूप धारण कर सकता है। इसके आसार अभी से सड़कों पर दिखाई देने लगा है।
संजय मग्गू
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