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देश के माहौल को विषाक्त करता सोशल मीडिया

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संजय मग्गू
हम आज जिस दौर में जी रहे हैं, वह सोशल मीडिया का युग है। इस सोशल मीडिया ने हमें सूचनाओं के ज्वालामुखी पर बैठा दिया है। फेसबुक, एक्स, यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे तमाम मंचों पर डाली गई एक फेक न्यूज हमें कितना प्रभावित कर सकती है, हमें इसका अंदाजा भी नहीं है। हमारे देश में 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर्स हैं। दिनोंदिन यह आंकड़ा बढ़ता ही जा रही है। ऐसी स्थिति में जब सोशल मीडिया पर फेक न्यूज की भरमार हो, तो हमारे देश के लोगों को किस तरह टारगेट किया जा सकता है। आज सोशल मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म पर जाएं, सांप्रदायिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने वाले हजारों लाखों पोस्ट मिल जाएंगी। कुछ पोस्ट और वीडियो तो इतनी नफरत भरी होती हैं जिनको पढ़ने और देखने के बाद मानसिक तनाव पैदा हो सकता है। यह सब जान बूझकर एक निश्चित उद्देश्य के तहत किया जा रहा है। मजेदार बात यह है कि गूगल, फेसबुक, इंस्टाग्राम, अमेजन, एक्स जैसे तमाम मंचों के कर्ताधर्ता हमारे देश के नहीं हैं। हमारे देश के 90 करोड़ से अधिक लोगों का डाटा विदेशी कंपनियों के पास सुरक्षित है। हमारे देश की कोई भी कंपनी एक ऐसा मंच उपलब्ध कराने में सफल नहीं हो सकी है जिसको इन विदेशी कंपनियों के प्लेट फार्म का विकल्प कहा जा सके। यदि कल इन विदेशी कंपनियों ने हमारे डॉटा का दुरुपयोग किया, हमारे देश की सुरक्षा व्यवस्था खतरे में डाली, तो उन्हें रोकने का कोई भी साधन हमारे पास नहीं है। इन सोशल मीडिया पर लोग अपनी नितांत निजी जानकारियां तक शेयर कर रहे हैं। जब भी हम कोई भी जानकारी इंटरनेट पर डालते हैं, तो वह कतई निजी नहीं रह जाती हैं। वह निजी जानकारी एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि के सर्वर में सेव यानी सुरक्षित हो जाती है। यदि हम उसके डिलीट यानी मिटा भी दें, तो वह उनके सर्वर में मौजूद रहती है। दरअसल हम यह सोच भी नहीं पाते हैं कि हमारी जानकारी का दुरुपयोग भी किया जा सकता है। हमारे द्वारा सोशल मीडिया पर डाली गई जानकारी को कोई हैकर हासिल करके हमें ब्लैकमेल कर सकता है, हमारे देश के खिलाफ उपयोग कर सकता है। यही नहीं, यह कंपनियां हमारे देश से कमाई भी बहुत करती हैं। अंतर्राष्ट्रीय कानून का हवाला देकर यह भारतीय बाजार में की गई कमाई पर टैक्स आदि देने से भी आनाकानी करती हैं। यह सही है कि फेसबुक, ह्वाट्सएप, एक्स, गूगल आदि से हमें कुछ लाभ जरूर है। इसने हमें दुनिया से जुड़ने और अपने ज्ञान को बढ़ाने का मौका उपलब्ध कराया है। लेकिन जरा सी चूक होने पर नुकसान भी कम नहीं हैं। इसके माध्यम से जिस तरह देश का वातावरण विषाक्त किया जा रहा है, लोगों के दिलोदिमाग में सांप्रदायिकता का जहर घोला जा रहा है, वह चिंतनीय है। चंद पैसों के लिए देश में अराजकता का माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है। सरकार को अमेरिका और यूरोपीय देशों से संचालित कंपनियों पर अंकुश लगाना ही होगा।

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