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नई शिक्षा नीति से और महंगी हो जाएगी शिक्षा

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कैलाश शर्मा
केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति के प्रावधानों को शीघ्र लागू करने जा रही है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि नई शिक्षा नीति में काफी अच्छी बातें हैं लेकिन यह कहना कि यह नई शिक्षा नीति सभी को स्वीकार है और इसमें सभी बातें,नियम कानून,प्रावधान पूरी तरह से सही हैं यह सही नहीं है। सरकारी तौर पर नई शिक्षा नीति के सकारात्मक पहलुओं को तो बताया जा रहा है लेकिन इसके नकारात्मक व दुष्परिणाम पहलुओं को छुपाया जा रहा है। हमारा मानना है कि नई शिक्षा नीति सबको शिक्षा,समान शिक्षा और सस्ती शिक्षा देने के उद्देश्य को पूरा नहीं करती है। इसके लागू होने से शिक्षा के व्यवसायीकरण को और बढ़ावा मिलेगा तथा शिक्षा और महंगी हो जाएगी। इसके अलावा सरकारी शिक्षा में भी कोई व्यापक सुधार नहीं होगा। नई शिक्षा नीति में 3 वर्ष पूर्व प्राथमिक कक्षा शुरू करना एक स्वागत योग कदम है लेकिन 3 वर्ष की पूर्व प्राथमिक एवं पहली-दूसरी कक्षा को मिलाकर फांऊडेशन स्तर मानना व इसे बिना किसी आधारभूत ढांचे के आंगनवाड़ी को सौंपना बच्चों के साथ धोखा और छलावा है। इस फांऊडेशन स्तर को मुख्य स्कूली शिक्षा का हिस्सा ही बनाना चाहिए था। इसी प्रकार 9 से 12 चार वर्ष में 8 समैस्टर इकट्ठे करना भी आम विद्यार्थियों विशेषकर गरीब-दलित व लड़कियों के लिए हानिकारक होगा। छठी कक्षा से व्यवसायिक कोर्स देना व इंटरर्नशिप लागू करना एक तरह से बाजार के लिए सस्ती बाल मजदूरी उपलब्ध करवाना ही है।11-12 वर्ष का नादान बच्चा तय नहीं कर पाएगा कि उसे आगे जाकर क्या बनना है। इस नीति का सीधा सा मतलब है कि वंचित तबकों के बच्चों को उच्च शिक्षा से दूर करना व पूंजीपतियों के लिए सस्ते मजदूर पैदा करना है। प्राथमिक स्तर तक शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होगा,निश्चित तौर पर यह स्वागत योग्य कदम है परन्तु यहां यह स्पष्ट नहीं है कि यह नियम केवल सरकारी विद्यालयों तक लागू होगा अथवा सभी प्राइवेट व कान्वैंट स्कूलों से भी इसे लागू करवाया जाएगा। अगर वर्तमान की भांति प्राइवेट व कान्वैंट स्कूलों में अंग्रेजी मीडियम जारी रहा तो अमीर-गरीब के बच्चों में भेदभाव की खाई और बहुत बढ़ जाएगी। नई शिक्षा नीति में विदेशी विश्वविद्यालय को खुला निमंत्रण दिया गया है। इससे एक बात तो निश्चित है कि अब शिक्षा और महंगी होगी,वंचित तबकों की पहुंच से बाहर होगी व अमीर-गरीब की खाई को बढ़ाएगी। इस नीति का एक मुख्य बिंदू दानदाताओं के दान पर आधारित शिक्षा उपलब्ध करवाना है। वर्तमान दौर में अनुभव यही कहते हैं कि यह दान,दान न होकर मुनाफे के लिए पूंजी निवेश होगा जिससे शिक्षा का व्यापारीकरण ही बढ़ेगा। छोटी व कम छात्र संख्या वाली शिक्षक संस्थाओं को बंद करके बड़ी-बड़ी संस्थाओं मात्र को जिंदा रखने की वकालत नई शिक्षा नीति करती है। इससे भी संस्थागत भेदभाव बढ़ेगा संस्थाओं के तीन प्रकार के वर्गीकरण किए गए हैं। निश्चित तौर पर इनमें से पहली प्रकार की संस्थाएं अति गरीब के लिए,दूसरी प्रकार की मध्यम वर्ग के लिए व तीसरी प्रकार की संस्थाएं उच्च वर्ग के लिए अपने आप आरक्षित हो जाएंगी।आज बहुत तेजी से स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक हर जगह कॉर्पोरेट जगत से जुड़े उद्योगपतियों, पूंजीपतियों का दबदबा हो गया है,शिक्षा पूरी तरह से लाभ का विषय बन गया है। शिक्षा के व्यवसायीकरण पर पूरी तरह से रोक लगाने व प्राइवेट कॉलेज व स्कूल संचालकों द्वारा सभी नियम कानूनों का उल्लंघन करके की जा रही लूट व मनमानी पर रोक लगाने व ऐसा करने वाले प्राइवेट शिक्षण संस्थानों पर दंडात्मक कार्यवाही करने का कोई भी प्रावधान इस नई शिक्षा नीति में नहीं है। इसके अलावा सरकारी शिक्षा को बढ़ावा देने,सरकारी कालेज व स्कूलों में अध्यापकों की कमी को दूर करने,उनमें सभी जरूरी आधुनिक संसाधन मुहैया कराने आदि के बारे में इस शिक्षा नीति में कुछ नहीं कहा गया है। सरकारी संस्थाओं को स्वायत्तता के नाम पर फंडिंग बंद करने व प्राइवेट को बराबर फंडिंग देने की बात देश के वर्गीय चरित्र में पूंजीपति परस्त है। नई शिक्षा नीति के अनुसार शिक्षा की गुणवत्ता में बढ़ावा देने के लिए शिक्षामित्र,एडहॉक,गेस्ट टीचर जैसे पद धीरे-धीरे समाप्त किए जाएंगे और बेहतर चयन प्रक्रिया का गठन कर स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों में नियमित और स्थायी अध्यापकों की नियुक्ति की जाएगी। यह एक स्वागत योग्य कदम है लेकिन शिक्षण संस्थानों में पहले से ही नियुक्ति प्रक्रिया रूकी हुई है अब एडहॉक और गेस्ट टीचर की व्यवस्था खत्म कर सरकार कॉन्ट्रैक्ट के आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति करना चाहती है जिनको प्रति क्लास के आधार पर भुगतान मिलेगा और उन्हें बीमा, छुट्टी,पेंशन आदि जैसी कोई सामाजिक सुरक्षा नहीं दी जाएगी। इससे शिक्षा के क्षेत्र में भी ठेकेदारी प्रथा को बढ़ावा दिया गया है। इस नई शिक्षा नीति में कई सारी बातें स्वागत योग्य हैं उनका हम समर्थन करते हैं। हमारा केंद्र सरकार से यही कहना है कि समय के अनुसार नई व अच्छी शिक्षा नीति बननी चाहिए पर उसमें उपरोक्त बताए गए,दर्शाए गए सभी अस्वीकार व विनाशकारी प्रभावों को हटाकर और उसमें संशोधित करके ही उसको लागू करना चाहिए जिससे गरीब मध्यम,वंचित तबकों-लड़कियों को इसका फायदा मिल सके।नई शिक्षा नीति ऐसी हो जिससे पूरे देश में सभी को एक जैसी समान शिक्षा सस्ती मिले,एक सिलेबस व एक ड्रेस हो। सरकारी स्कूल खासकर प्राथमिक शिक्षा व कॉलेजों की शिक्षा मजबूत हो,उनमें सभी जरूरी और आधुनिक सुविधाएं मौजूद हों जिससे अभिभावकों का रुझान सरकारी शिक्षा, स्कूल कॉलेजों की ओर हो जाए। तभी नई शिक्षा नीति सही मानी जाएगी।

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