वायु प्रदूषण हरियाणा ही नहीं, पंजाब, उत्तर प्रदेश, दिल्ली आदि की भी सबसे बड़ी समस्या है। सर्दियों में तो हरियाणा और दिल्ली की जनता गैस चैंबर जैसे हालात में रहने को मजबूर हो जाती है। सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। ऐसी स्थिति के लिए जहां दिल्ली और हरियाणा की औद्योगिक इकाइयां जिम्मेदार हैं, वहीं इन प्रदेशों में पुराने और अनफिट डीजल और पेट्रोल (Diesel petrol) चालित वाहन भी जिम्मेदार हैं। पुराने और अनफिट वाहन एक तो डीजल या पेट्रोल की खपत अधिक करते हैं और वहीं दूषित धुआं भी बहुत ज्यादा छोड़ते हैं। वैसे भी दुनिया में कच्चे तेल का उत्पादन काफी कम होता जा रहा है। निकट भविष्य में डीजल-पेट्रोल की उपलब्धता काफी कम हो जाएगी।
ऐसी स्थिति में डीजल-पेट्रोल का विकल्प खोज लेना ही उचित है। वैसे भी डीजल-पेट्रोल (diesel petrol) चालित वाहन से निकला जहरीला धुआं लोगों का दम घोंट देता है। इस स्थिति से बचने के लिए मनोहर सरकार ने नई स्क्रैप नीति लाने का फैसला किया है। इस नीति के तहत पुराने और अनफिट वाहनों को नष्ट किया जाएगा। इसके साथ ही पुराने वाहनों के उपयोग को हतोत्साहित करने का प्रयास किया जाएगा। इसके लिए रजिस्ट्रेशन अवधि बढ़ाने को भारी भरकम फिटनेस शुल्क वसूला जाएगा। यही नहीं, प्रदेश सरकार शहरों के बाहरी सीमा पर ईको पार्क और रीसाइक्लिंग पार्क बनाएगी जहां पर पुराने वाहनों को नष्ट किया जाएगा। ईको पार्क और रीसाइक्लिंग पार्क बनने से स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा। युवाओं के रोजगार की समस्या का भी इस नीति से निराकरण भी होगा।
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इस नई नीति का ध्येय यह है कि पुराने और अनफिट वाहनों की जगह इलेक्ट्रिक और बैटरी चालित वाहनों के संचालन को प्रोत्साहित किया जाए। इलेक्ट्रिक या बैटरी से चलने वाले वाहनों से प्रदूषण बिल्कुल नहीं होता है। फिर इनके पुराने हो जाने पर रीसाइक्लिंग भी आसान होती है। यदि प्रदेश में सख्ती से नई स्क्रैप नीति लागू कर दी गई तो यह तय है कि प्रदेश में प्रदूषण काफी हद तक नियंत्रित हो जाएगा। इसके साथ ही लोगों को निजी वाहनों की जगह सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करने को प्रेरित करना होगा।
सड़कों पर जब वाहनों की संख्या घटेगी, तो स्वाभाविक रूप से प्रदूषण भी घटेगा। प्रदेश में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर का एक मुख्य कारण किसानों द्वारा पराली को जलाना माना जाता है। किसान अपने खेतों में पराली न जलाएं, इसके लिए हरियाणा सरकार ने 1400 करोड़ रुपये की भूसा काटने की मशीनें तक किसानों को उपलब्ध कराई हैं। इसके अलावा प्रति एकड़ पराली पर किसानों को अच्छी खासी रकम भी मिलती है। पिछले कुछ वर्षों से पराली जलाने की घटनाएं हरियाणा में काफी कम हुई हैं।
-संजय मग्गू
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