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पाला बदल राजनीति की मिसाल बन गए हैं नीतीश कुमार

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देश में इस साल होने वाले आम चुनाव से पहले सियासत का निष्ठुर रूप देखने को मिला है। उस प्रदेश में जो राजनीतिक चेतना या क्रांति के लिए अपनी अलग पहचान रखता है। सामाजिक न्याय के लिए, आपातकाल के विरोध के लिए और गैर कांग्रेसी समाजवादी पौध को सींचने के लिए जरूरी खाद या रसद बिहार में भरपूर है। इस बार सियासी खाद वाले इलाके में लोकतंत्र ने पालाबदल के निष्ठुर सियासी चेहरे के रूप में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पाया है। भाजपा की अगुवाई वाले राजग के खिलाफ कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर गठबंधन इंडिया का चोला तैयार करने वाले नीतीश ने ही उसी चोले को ऐसा तार-तार किया है कि बेतार क्रांति वाले इस युग में बेतार वाली सियासत पर चर्चा चल पड़ी है।

इन सबसे इतर नीतीश की अपनी कई खासियतें भी हैं। सबसे अव्वल तो यह कि लीक से हटकर चलने वाली राह उनकी रग में युवावस्था या छात्र जीवन से ही रही है। इसी क्रम में सबसे अहम बात यह है कि नीतीश का परिवार हमेशा से ही लाइमलाइट से दूर रहा है। उनका इकलौता बेटा निशांत कुमार भी किंचित ही सियासी चर्चा में रहता है। इसके अलावा उनके भाई, बहन और पत्नी के बारे में भी लोगों को कम ही पता है। परिवार में नीतीश कुमार की तीन बहनें और एक बड़े भाई हैं। उन्होंने लीक से हटकर अंतर-जातीय विवाह किया। उनकी शादी 22 जून 1973 को मंजू कुमारी सिन्हा से हुई थी जो सरकारी स्कूल में टीचर थीं। 2007 में उनका निधन हो गया था। पत्नी की मौत पर नीतीश काफी दुखी हुए थे और बिलख-बिलखकर रोए थे।

नीतीश कुमार का जन्म एक मार्च 1951 को बिहार के बख्तियारपुर में हुआ था। उन्होंने बिहार कॉलेज आॅफ इंजीनियरिंग (अब एनआईटी पटना) से साल 1972 में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। पढ़ाई के बाद उन्होंने बिहार इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड में काम किया। यहां उनका मन नहीं लगा तो वह राजनीति में उतर आए। 70 के दशक में इंदिरा गांधी और कांग्रेस सरकार की नीतियों के खिलाफ पूरे देश में गुस्सा था। जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में बिहार के साथ पूरे देश में आंदोलन चल रहा था। ऐसे में नीतीश कुमार भी उस आंदोलन से जुड़ गए। जेपी के इस आंदोलन ने केंद्र की इंदिरा सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई।

तब इस आंदोलन में कई युवा नेता उभर कर सामने आए, इनमें से एक नीतीश भी थे। जनता पार्टी के अध्यक्ष सत्येंद्र नारायण सिन्हा के वह काफी करीबी हो गए थे। उन्हीं की बदौलत वह जनता पार्टी में शामिल हो गए। उन्होंने जनता पार्टी के सदस्य के रूप में पहली बार 1977 का बिहार विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। 1985 में उन्होंने फिर से विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1987 में उन्हें लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।

1989 में उनको बिहार में जनता दल के महासचिव नियुक्त किया गया। उसी साल बाढ़ लोकसभा क्षेत्र से संसद चुने गए। अप्रैल से नवंबर 1990 तक नीतीश कुमार ने केंद्रीय कृषि और सहकारिता मंत्री के रूप में काम किया। 1991 में वह दूसरी बार सांसद चुने गए। उनको संसद का उपनेता बनाया गया। वह मंडल आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन में शामिल थे। फिर 1995 में उन्होंने बिहार विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव के खिलाफ लड़ाई लड़ी।

जॉर्ज फर्नांडीस के साथ समता पार्टी की शुरुआत की। तब चुनाव में उनकी पार्टी केवल छह सीटें ही जीत सकी थी। सन 1996 में नीतीश ने फिर से लोकसभा चुनाव लड़ा और सांसद चुने गए। उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय रेल मंत्री, भूतल परिवहन मंत्री और कृषि मंत्री की जिम्मेदारी दी गई। दो अगस्त 1999 में गैसल ट्रेन दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए उन्होंने केंद्रीय रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। मार्च 2000 में वह पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। हालांकि, केवल सात दिनों तक ही उनका कार्यकाल रहा। इसके बाद 2005, 2010, 2013, 2015, 2017, 2020, 2022 और 28 जनवरी 2025 को कुल नौ बार मुख्यमंत्री बने।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

-जनार्दन सिंह

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