हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है। चीन की भाषा मंदारिन के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है। यह सही है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संपर्क की भाषा है, लेकिन हमारे लिए हिंदी ही सबसे महत्वपूर्ण है। आजादी से पहले भी हिंदी भाषा को लेकर तमाम सवाल उठे थे। दक्षिण भारत के लोग हिंदी का विरोध कर रहे थे। गांधी जी हिंदी-उर्दू मिश्रित हिंदी के पक्ष में थे। हिंदी के पक्ष में तो महात्मा गांधी ने एक अंग्रेजी अखबार को इंटरव्यू देते हुए कहा था कि दुनिया को बता दो, गांधी अंग्रेजी नहीं जानता है। इंटरव्यू लेने वाला पत्रकार चाहता था कि गांधी उसे अंग्रेजी में इंटरव्यू दें, लेकिन वह हिंदी में ही बोलना चाहते थे। बाद में उन्होंने पूरा इंटरव्यूह हिंदी में ही दिया।
राष्ट्रवादी क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद बोस बांग्ला भाषी होते हुए भी हिंदी सीखने को उत्सुक रहते थे। एक बार की बात है। वे बर्मा (वर्तमान म्यांमार) में एक व्यवसायी के यहां रहकर हिंदी सीखते थे। एक दिन उस व्यक्ति ने नेताजी से कहा कि आप दिनभर तो फौज से लड़ाई की बात करते हैं। अपने सैनिकों से तो अंग्रेजी में बात करते हैं। आप की मातृभाषा बांग्ला है। ऐसे में हिंदी सीखने की ललक क्यों है आपमें। इस पर नेताजी सुभाष ने कहा कि यह मुझे विश्वास हो चला है कि हमारे देश के क्रांतिकारी आज नहीं तो कल देश को आजाद करा ही लेंगे।
जब हमारा देश आजाद हो जाएगा, तो हम सबको अपने देश की जनता के सामने जाना ही पड़ेगा। ऐसे में हम अपनी जनता को अंग्रेजी में संबोधित करें, यह कतई अच्छा नहीं लगता है। जब देश की जनता हिंदी बोलती, समझती है, तो हमें हिंदी ही बोलना चाहिए। यही वजह है कि मैं मौका निकालकर हिंदी सीखना चाहता हूं। यह सुनकर वह व्यक्ति नेताजी के हिंदी प्रेम के प्रति नतमस्तक हो गया।
लेखक: अशोक मिश्र