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HomeEDITORIAL News in Hindiकोई भी धर्म नहीं कहता समाज में नफरत फैलाओ

कोई भी धर्म नहीं कहता समाज में नफरत फैलाओ

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देश में इन दिनों सांप्रदायिक सौहार्द काफी बिगड़ चुका है। धार्मिक मुद्दों पर बार-बार जारी होने वाले बयान कहीं न कहीं समाज में विघटन पैदा करते हैं। इस बात को लेकर अदालतें भी अपनी चिंता जाहिर कर चुकी हैं। अभी कल ही मद्रास हाईकोर्ट ने सनातन धर्म को लेकर छिड़े विवाद को लेकर कहा कि अभिव्यक्ति की आजादी का यह मतलब कतई नहीं है कि समाज में घृणा फैलाई जाए। धर्म के नाम पर नफरत फैलाई जाए। मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन शेषशायी ने तो यहां तक कहा कि  आम तौर पर सनातन धर्म शाश्वत कर्तव्यों का एक समूह माना जाता है जिसमें राष्ट्र के प्रति कर्तव्य, राजा के प्रति कर्तव्य, राजा का प्रजा के प्रति कर्तव्य, माता-पिता और गुरुओं के प्रति कर्तव्य, गरीबों की देखभाल जैसे तमाम कर्तव्य इसमें समाहित हैं।

इसके विरोध का मतलब है कि ये सभी कर्तव्य बेमानी हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतांत्रिक व्यवस्था में सबको अपने धर्म और परंपरा के अनुसार पूजा करने, पूजा पद्धति को अपनाने और उसके अनुरूप आचरण करने की स्वतंत्रता है। इस देश में विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग रहते हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के साथ-साथ बहुत बड़ी संख्या में आदिवासी रहते हैं जिनकी पूजा पद्धति हमसे अलग है। ये सभी अपनी आस्था और विश्वास के आधार पर अपना जीवन यापन कर सकते हैं।

लेकिन यह हक किसी को नहीं है कि वह किसी दूसरे के धर्म और परंपरा को बुरा बताते हुए उपहास करे या अपमान जनक टिप्पणी करे। इन दिनों तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के पुत्र और मंत्री उदयनिधि स्टालिन के बयान को लेकर पूरे देश में तूफान खड़ा हो गया है। उत्तर भारत में इसको लेकर उदयनिधि और ए राजा की बड़ी आलोचना की जा रही है। कई राज्यों में उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जा चुकी है। कुछ साधु-संतों ने सिर तक कलम करने का आह्वान किया है।

पिछले दो दशक से धीरे-धीरे समाज की सांप्रदायिक एकता को किसी न किसी तरह से तोड़ने का प्रयास किया जाता रहा है। उदयनिधि और ए राजा का बयान किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार करने योग्य नहीं है। लेकिन जिस तरह धर्म संसद आयोजित करके एक धर्म विशेष के प्रति जहर उगले जाते हैं, वे भी कतई बर्दाश्त नहीं किए जा सकते हैं।

धर्म संसद में किस तरह के बयान पिछले कुछ सालों में दिए गए वह किसी से छिपा नहीं है। जानबूझकर उकसावे की कार्रवाई की गई, ताकि समाज में हिंसा भड़के और इसका लाभ उठाया जा सके। सच तो यह है कि हिंदुत्व या इस्लाम के खतरे का नाम लेकर कुछ स्वार्थी तत्व समाज में घृणा का माहौल पैदा करना चाहते हैं। अगर सड़क पर नमाज पढ़ना गलत है, तो सड़क को घेरकर जागरण करना भी उचित नहीं है।

सबसे अच्छा तो यह होगा कि सभी जाति और धर्म के लोग सांप्रदायिक सौहार्द और सहिष्णुता का परिचय देते हुए एक दूसरे के धर्म और आस्था का सम्मान करें। सभी लोग मिल जुलकर देश और समाज के विकास में अपना योगदान दें।

संजय मग्गू

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