पिछले हफ्ते ही केंद्रीय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के लिए 13 हजार करोड़ रुपये के खर्च की मंजूरी दी है। इस योजना के तहत बढ़ई, लुहार, नाई, माली, धोबी, सुनार, कुम्हार, मोची और दर्जी सहित करीब 18 किस्म के पारंपरिक पेशे को अपनाने वालों को केंद्र सरकार पहले एक लाख रुपये और बाद में दो लाख रुपये बहुत कम ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराएगी। ताकि इन लोगों को अपना रोजगार जमाने और आगे बढ़ाने में किसी किस्म की दिक्कत न आए। सदियों से हमारे देश की सामाजिक और आर्थिक गतिविधि का आधार नाई, बढ़ई, कुम्हार जैसे पेशे में लगे लोग हुआ करते थे। प्राचीन पुस्तकों से पता चलता है कि शुरुआती दौर में ये पेशे जन्मगत नहीं हुआ करते थे। लेकिन बहुत बाद में ये सभी पारंपरिक पेशे जन्मगत होने लगे। यानी कुम्हार के घर पैदा होने वाला बच्चा यही पेशा करेगा।
शायद यह हमारे इतिहास की एक भूल थी, लेकिन इसके बावजूद इन पेशों से जुड़े लोग हमारे सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक गतिविधियों के केंद्र में हुआ करते थे। इनकी आजीविका का आधार खेती और खेती करने वाले किसान से लेकर व्यापारी समुदाय तक हुआ करते थे। इन्हें व्यापारियों से तो सालाना या छमाही तनख्वाह मिला करती थी, लेकिन किसान अपनी खेती का कुछ हिस्सा देते थे। पूरे गांव से खेती में मिलने वाले हिस्से से इनका गुजारा होता था। यदि खेती ऊंची-नीची हो जाती थी, तो इसका प्रभाव इन पर भी पड़ता था। लेकिन आजादी के बाद धीरे-धीरे हालात बदलने लगे। गांवों में परिवार बढ़ने और संपत्ति का बंटवारा होने के चलते जब खेत बहुत छोटे होने लगे, तो परिवार का गुजारा मुश्किल से होने लगा। नतीजा यह हुआ कि गांवों से शहरों की ओर पलायन होने लगा।
शहरों में भी कई नई तरह के व्यवसाय और नौकरियां पैदा होने लगीं। लेकिन अब यह काफी दिनों से महसूस किया जा रहा है कि गांवों में रोजगार न होने से शहरों को होने वाला पलायन अब शहरों पर भी भारी पड़ने लगा है। वैसे दुनिया के जितने भी समृद्ध देश हैं, उन देशों में शहरों और गांवों की आबादी के प्रतिशत में बहुत ज्यादा का फर्क नहीं है। सन 1901 की जनगणना के मुताबिक भारत के शहरों में 11.4 प्रतिशत आबादी रहती थी, लेकिन वर्ष 2001 तक यह प्रतिशत 28.53 और वर्ष 2017 तक 34 प्रतिशत आबादी शहरों में रहने लगी थी। स्वााभाविक है कि निकट भविष्य में यह आंकड़ा और बढ़ने वाला है। विश्व बैंक का एक सर्वे बताता है कि वर्ष 2030 तक शहरों की आबादी का प्रतिशत 40.76 प्रतिशत हो चुका होगा। यही वजह है कि भारत सरकार ने प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना के तहत गांवों में ही प्रशिक्षित और कार्य कुशल युवाओं को रोजगार दिलाने की तैयारी कर ली है। अब गांवों की भी तस्वीर बदल रही है। यदि पारंपरिक पेशे वाले लोगों को सरकारी मदद मिल जाती है, तो वे अपने रोजगार को गांवों में रहकर भी बढ़ा सकते हैं। वे अपनी आर्थिक दशा गांव में रहकर भी ऊंचा कर सकते हैं।
संजय मग्गू