इन दिनों दुर्गा पूजा और रामलीला की धूम मची हुई है। उत्तर भारत में शायद ही किसी भी शहर का कोई मोहल्ला ऐसा बचा हो जहां दुर्गा पूजा या रामलीला का आयोजन न किया जा रहा हो। हरियाणा में भी इन दिनों भक्तिमय माहौल है। लेकिन पलवल जिले के कैंप मोहल्ले का बताया जा रहा एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है। इस वीडियो में जो दिखाया गया है, उसके मुताबिक रावण दरबार सजा है और एक नर्तकी ‘छत पर सोया था बहनोई’ वाले गीत पर नृत्य कर रही है। इस बीच रावण के दरबारी राक्षस भी नर्तकी के साथ नृत्य करने लगते हैं। लोगों की आपत्ति है कि इस तरह के अश्लील नृत्य रामलीला के दौरान नहीं होने चाहिए। लोगों की आपत्ति बिल्कुल जायज है। ऐसा नहीं है कि आज से तीस-चालीस साल पहले होने वाली रामलीलाओं में नर्तकियों के नृत्य का मंचन नहीं होता था। होता था, लेकिन उसकी एक मर्यादा थी।
नर्तकी के नृत्य के साथ एक विदूषक भी होता था जो हल्के-फुलके शिष्ट हास्य से लोगों का मनोरंजन करता था। नवरात्रि की शुरुआत से ही रामलीलाओं का मंचन जगह-जगह शुरू हो जाता था। उन दिनों लोगों के मनोरंजन और धार्मिक आस्था जगाने का यही साधन हुआ करता था। रामलीलाओं के बहाने लोगों की धार्मिक आस्था संतुष्ट हो जाती थी और शालीन नृत्य और हास्य से मनोरंजन भी हो जाता था। कई जगहों पर कुछ संस्थाएं रामलीला खत्म होने के बाद भी कुछ नाटकों का मंचन करती थीं जिनमें भक्त प्रह्लाद, भक्त पूरणमल, सावित्री-सत्यवान आदि प्रमुख थे। दरअसल, 16वीं शताब्दी में रामचरित मानस के रचियता गोस्वामी तुलसी दास ने तीन स्थानों पर रामकथा का मंचन शुरू करवाया था। कहा जाता है कि काशी, चित्रकूट और लखनऊ के ऐशबाग में रामलीलाओं के मंचन की शुरुआत कराई थी ताकि राम का चरित जनमानस तक पहुंच सके। वे अपने आराध्य राम की कथा को जन-जन तक पहुंचाना चाहते थे। यह सच भी है कि रामचरित मानस की लोकप्रियता में इन रामलीलाओं का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
धीरे-धीरे पूरे उत्तर भारत में रामलीलाओं का मंचन होने लगा। नवरात्रि का मतलब उत्तर भारतीय लोगों के लिए चार-पांच दशक पहले यही था कि नौ दिन देवी की पूजा-अर्चना और रात में रामलीला का मंचन। कम से कम उत्तर भारत में नवरात्रि के दौरान जगराते या दुर्गा पूजा का चलन बहुत कम था। नवरात्रि के दौरान रामलीलाओं के मंचन की भरमार रहती थी, लेकिन जैसे-जैसे शाक्तों, शैवों और वैष्णवों का आपसी मेलजोल बढ़ा, फिल्मों ने दुर्गा पूजा को ग्लैमराइज किया, उत्तर भारत में भी पंडाल सजाकर दुर्गा पूजा आयोजित किए जाने लगे। मैदानों पर अतिक्रमण या आवास, दुकान या व्यावसायिक कांप्लेक्स बनने की वजह से खुले मैदानों की कमी होने पर रामलीलाओं का मंचन सीमित होने लगा। दुर्गा पूजा के लिए अपेक्षाकृत कम स्थान की जरूरत के चलते इनका प्रचार-प्रसार होता गया। ऐसा भी नहीं है कि रामलीलाओं का मंचन खत्म हो गया है या उनका मंचन बंद हो जाने का खतरा है, लेकिन रामीलाओं के मंचन संख्या के हिसाब से कम होने लगे हैं। ऐसे में ये फूहड़ नृत्य लोगों की रुचि को और कम कर देंगे, ऐसी आशंका है।