सत्संग और कुसंग जीवन के दो पहलू हैं। पहला व्यक्ति को उदार,भला और दूसरों के प्रति दयालु बनाता है और दूसरा व्यक्ति को क्रूर, अनुदार और स्वार्थी बना देता है। यह व्यक्ति के परिवेश पर निर्भर करता है कि वह कैसा बनता है। कुसंग में पड़ा व्यक्ति अपना तो नुकसान करता ही है, वह दूसरों को भी शांति से नहीं बैठने देता है। हमेशा दूसरों को परेशान करने, दूसरों का धन हड़पने और गलत काम करने की ओर ही उसका ध्यान लगा रहता है। सत्संग और कुसंग के बारे में एक बड़ी रोचक कहानी है। एक बार की बात है, एक राजा किसी काम से घोड़े पर सवार होकर निकला। रास्ते में कुछ ऐसा हुआ कि वह अपने साथ आए सैनिकों से अलग हो गया। भूखा-प्यासा राजा एक गांव के सामने से गुजरा, तो एक घर के बाहर लटक रहे पिंजरे में बैठा तोता जोर-जोर से चिल्लाने लगा, पकड़ो! मारो! राहगीर आया है।
उसे लूट लो, मार डालो। यह सुनकर राजा समझ गया कि वह डाकुओं के गांव से होकर गुजर रहा है। तोते की बात सुनकर राजा ने घोड़े की एड लगाई और भाग निकला। डाकुओं ने कुछ दूरी तक उनका पीछा भी किया, लेकिन राजा बच निकला। भागते-भागते वह एक गांव में पहुंचा। तब तक वह थककर चूर हो गया था। वहां एक कुटिया के सामने टंगे पिंजरे में मौजूद तोते ने राजा को देखते ही कहा, अरे बाहर निकलो! अतिथि आया, उसे पानी दो, खाना दो। यह सुनकर कुटिया से एक व्यक्ति बाहर निकला।
तोते की आवाज सुनकर गांव के कुछ और लोग भी जमा हो गए थे। उन्होंने राजा का खूब आदर सत्कार किया। खाने-पीने की व्यवस्था की। थोड़ी देर बार राजा ने सारी बात बताई, तो उस गांव के बुजुर्ग ने कहा कि दोनों तोते एक ही माता-पिता की संतान हैं। लेकिन कुसंग में पड़कर दूसरा तोता डाकुओं की भाषा बोलने लगा है। उसका आचरण खराब हो गया है।
अशोक मिश्र