बगीचे से सबसे सुंदर फूल तोड़ लाओ
अशोक मिश्र
सफलता का कोई निश्चित क्रम नहीं है। कई बार छोटे से प्रयास से ही सफलता मिल जाती है, कोई बार काफी प्रयास करना पड़ता है। कई बार ऐसा भी होता है कि जो काम कर रहे हैं और सफलता नहीं मिल रही है, तो उसी काम को एक बार फिर नए सिरे से करना पड़ सकता है। सफलता बस जिद करने और हार न मानने से मिलती है। एक बार की बात है। किसी गांव में एक संत रहते थे। लोग उनके पास अपनी समस्याओं को लेकर आते, तो वह उन्हें हर करने का प्रयास करते। लोग संत का उपाय सुनते और संतुष्ट होकर चले जाते। एक संत के पास एक युवक आया और बोला, महाराज! मैं जीवन में सर्वोच्च शिखर तक जाना चाहता हूं। लेकिन मैं इसके लिए छोटे स्तर से कोई शुरुआत नहीं करना चाहता हूं। संत ने युवक की बात बड़े गौर से सुनी और कहा, यह काम तो बहुत आसान है। मैं तुम्हें निचले स्तर से काम शुरू किए बिना उच्चतम शिखर तक पहुंचने का रास्ता बता दूंगा, लेकिन तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। युवक ने कहा कि बताएं, क्या करना है? संत ने कहा कि आश्रम में लगे बगीचे में से एक सुंदर फूल तोड़ लाओ, लेकिन एक शर्त है कि तुम जिस पौधे को तुम पार कर लोगे, फिर दोबारा लौटकर उस पौधे से फूल नहीं तोड़ना है। यह सुनकर युवक फूल तोड़ने को तैयार हो गया। वह बगीचे में पहुंचा, उसने देखा कि एक से बढ़कर एक सुंदर फूल लगे हुए हैं। उसने सोचा कि आगे चलकर देखूं शायद इससे अच्छे फूल लगे हों। अंत में जब वह पहुंचा, तो वहां उसे मुरझाए हुए फूल मिले। वह खाली हाथ लौटकर संत के पास पहुंचा और सारी बात बताई। तब संत ने कहा कि कोई जरूरी नहीं है कि किसी काम में सफलता अंत में मिले। पहले भी मिल सकती है। यह सुनकर युवक चुप रह गया।
अशोक मिश्र