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तीन बाहरी मोर्चों पर लड़ता लुटा-पिटा, दीनहीन पाकिस्तान

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आंतरिक संघर्ष में उलझा दीनहीन और बेचारगी की हद तक पहुंचा पाकिस्तान अब तीन तरफ से घिर गया है। पाकिस्तान के हालात पहले से ही खराब थे। राजनीतिक अस्थिरता के माहौल में चुनाव होने जा रहे हैं। सिर्फ 19-20 दिन ही बचे हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान अलग पाकिस्तान की हुकूमत के लिए एक समस्या बनकर उभरे हैं। ऐसी स्थिति में ईरान से नया पैदा हुआ तनाव पाकिस्तान के लिए नया सिरदर्द साबित होने वाला है। बलूचिस्तान में सक्रिय आतंकवादी संगठन जैश अल अद्ल की ईरान में सक्रियता ने पाकिस्तान के लिए संकट खड़ा कर दिया है।

बलूचिस्तान में रहने वाले बलूची अपनी स्वतंत्रता को लेकर काफी लंबे समय से संघर्ष करते चले आ रहे हैं। बलूचिस्तान को स्वतंत्र कराने का प्रयास कोई आज से शुरू नहीं हुआ था। पाकिस्तान ने वर्ष 1948 को बलूचिस्तान को अपना उपनिवेश बना लिया। बलूच जनजाति बलूचिस्तान क्षेत्र के लोगों का एक समूह है। यह क्षेत्र तीन क्षेत्रों में बंटा हुआ है। इसका उत्तरी भाग वर्तमान अफगानिस्तान में है। पश्चिमी क्षेत्र ईरान में है, जो सिस्तान-बलूचिस्तान क्षेत्र कहलाता है। बाकी हिस्सा पाकिस्तान में है। बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है और पाकिस्तान बनने के बाद से अब तक उपेक्षित रहा है।

ईरान से पंगा लेना पाकिस्तान के लिए वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में काफी भारी पड़ सकता है। उधर भारत से पाकिस्तान हमेशा से उलझा रहा है। भारत की संप्रभुता, संपन्नता और हर क्षेत्र में हो रही प्रगति पाकिस्तानी राजनेताओं को कभी रास नहीं आई है। वे अपने यहां आतंकवादी संगठनों को प्रश्रय देकर जम्मू-कश्मीर को हमेशा अशांत करने में ही लगे रहे। नतीजा यह हुआ कि इस चक्कर में उनकी अर्थव्यवस्था और देश की शांति के लिए ये आतंकवादी भारी पड़ते रहे। भारत के खिलाफ इनकी कोई भी मुहिम सफल नहीं हो पाई।

पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए, वह अलग। बांग्लादेश का निर्माण पाकिस्तानी सियासतदानों के गाल पर एक ऐसा तमाचा था जिसकी गूंज आज भी सुनाई देती है। इसका बदला वे जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करके लेना चाहते हैं, लेकिन यह सपना कभी पूरा होने वाला नहीं है। अब तो अफगानिस्तान ने भी पाकिस्तान को आंख दिखाना शुरू कर दिया है। जब अफगानिस्तान में तालिबानी शासन की शुरुआत हुई थी, तो पाकिस्तान ने लपककर सबसे पहले तालिबानी शासन को मान्यता दी थी।

भारत सहित दुनिया के कई देशों ने आज तक तालिबानी शासन को मान्यता नहीं दी है। अब तालिबान से पाकिस्तान का सीमा विवाद चरम पर है। अफगानिस्तान अपने यहां के पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने में लगा हुआ है। लाखों पाकिस्तानियों को वह अपने देश से निकाल रहा है। ऐसी स्थिति में वह तीन तरफ से घिर गया है। अर्थव्यवस्था पहले से ही पाकिस्तान की खस्ताहाल है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक से और कर्ज देने की गुहार लगा चुका है। पाकिस्तान की जनता पहले से ही परेशान है। खाने को अनाज नहीं है। ऐसी स्थिति में पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर आ खड़ा हुआ है।

-संजय मग्गू

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