सोनम लववंशी
स्वतंत्र लेखिका एवं शोधार्थी
एक स्वस्थ देश के निर्माण की राह में नागरिकों का मोटापा किस कदर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिंतित कर रहा है, इसकी बानगी हाल ही में आकाशवाणी पर माह के अंतिम रविवार को प्रसारित होने वाले ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देखने को मिली। आंकड़ों पर गौर करें तो विश्व भर के 250 करोड़ लोग मोटापे से जूझ रहे हैं, जबकि भारत में हर आठवां व्यक्ति मोटापे का शिकार है। यह समस्या केवल बड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि अब बच्चों को भी अपने आगोश में ले रही है, और हाल के वर्षों में तो यह समस्या चार गुना तक बढ़ गई है। इसके कारण हृदय रोग, तनाव, मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को आगाह किया और इससे बचने की सलाह दी। साथ ही, देशवासियों से खाने में तेल की खपत को 10 प्रतिशत घटाने का आग्रह किया। इस मुहिम के लिए दस नामी-गिरामी हस्तियों को अभियान से जोड़ा गया, जो मोटापे को समाप्त करने की श्रृंखला के प्रारंभिक व्यक्ति के तौर पर होंगे। इनमें उमर अब्दुल्ला, आनंद महिंद्रा, मनु भाकर, आर. माधवन, नंदन नीलेकणी, श्रेया घोषाल, निरहुआ, सुधा मूर्ति और मीरा बाई जैसी हस्तियां शामिल हैं।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, मोटापा एक महामारी बन चुका है, जो हर साल 28 लाख वयस्कों की जान ले रहा है। भारत में करीब 10 करोड़ से ज्यादा लोग मोटापे से जूझ रहे हैं, जिनमें 12 प्रतिशत पुरुष और 40 प्रतिशत महिलाएं बेली फैट से परेशान हैं। आंकड़ों के अनुसार, स्थिति वाकई डराने वाली है। ‘द लांसेट’ पत्रिका के अनुसार, भारत में 5 से 19 वर्ष के करीब 1.25 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार हैं, जबकि 1990 में यह संख्या मात्र 4 लाख थी। वयस्कों की स्थिति भी कम भयावह नहीं है। 2022 में 4.4 करोड़ महिलाएं और 2.6 करोड़ पुरुष मोटापे से ग्रस्त थे। ऐसे में यह विकास है या विनाश, यह तय करना मुश्किल होता जा रहा है। ग्लोबल ओबेसिटी ऑब्जर्वेटरी के आंकड़े बताते हैं कि मोटापे से आर्थिक बोझ लगातार बढ़ रहा है। 2019 में जहां यह 2.4 लाख करोड़ रुपये था, वहीं 2030 तक यह 6.7 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। यह दर्शाता है कि अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो यह समस्या और विकराल रूप धारण कर सकती है।
भारत विकासशील देश से विकसित बनने की राह पर तेजी से अग्रसर है, लेकिन इसी रफ्तार में हमारा शरीर भी तेजी से फैलता जा रहा है। एक समय था जब ‘तोंद’ को समृद्धि का प्रतीक माना जाता था, लेकिन अब डॉक्टर इसे बीमारी का घर बताते हैं। मोटापा आज केवल व्यक्तिगत समस्या नहीं रही, बल्कि राष्ट्रीय चिंता का विषय बन चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बढ़ती समस्या को भांपते हुए इसे रोकने की ठानी और ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ जैसे अभियानों के माध्यम से पूरे देश को समझा रहे हैं कि ‘स्वास्थ्य ही धन है।’ देखा जाए तो मोटापे की समस्या आधुनिक जीवनशैली की देन है। पहले भोजन खाने से पूर्व हाथ धोने की आदत थी, अब ‘ऑनलाइन फूड डिलीवरी’ ऐप चेक करना प्राथमिकता बन गया है। बच्चे खेल के मैदान में कम, मोबाइल स्क्रीन में ज्यादा व्यस्त रहते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने देहरादून में राष्ट्रीय खेलों के उद्घाटन के दौरान भी मोटापे की समस्या को लेकर चिंता व्यक्त की और ‘फिटनेस’ को रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बनाने की अपील की। उन्होंने कहा कि अगर हम रोजमर्रा की भागदौड़ में से थोड़ा समय निकालकर व्यायाम करें, तो कई बीमारियों से बच सकते हैं। इस पूरी मुहिम में खानपान की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत का भोजन हमेशा से वैज्ञानिक रूप से संतुलित रहा है, लेकिन पिज्जा, बर्गर और इंस्टेंट नूडल्स की बढ़ती लोकप्रियता ने इसे हाशिए पर धकेल दिया है। जंक फूड की बढ़ती लत इस समस्या को और जटिल बना रही है। मोदी सरकार ने ‘ईट राइट इंडिया’ अभियान को बढ़ावा देते हुए लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया है कि ‘स्वस्थ खाना ही असली खाना है।’ प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल को कई मशहूर हस्तियों का भी समर्थन मिला है। लेकिन असली सवाल यह है कि क्या हम केवल सोशल मीडिया पर ‘फिटनेस चैलेंज’ स्वीकार करने तक सीमित रहेंगे, या फिर वास्तव में अपने शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयास करेंगे?
सरकार चाहे जितने भी अभियान चला ले, जब तक आम जनता खुद स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं देगी, तब तक मोटापे की समस्या बनी रहेगी। प्रधानमंत्री मोदी की इस मुहिम का उद्देश्य लोगों को जागरूक करना है कि फिटनेस कोई विकल्प नहीं, बल्कि अनिवार्यता है। मोटापे की समस्या केवल शरीर तक सीमित नहीं रहती, यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य, आत्मविश्वास और कार्यक्षमता पर भी असर डालती है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं, व्यायाम को दिनचर्या का हिस्सा बनाएं और संतुलित आहार अपनाएं। मोदी की इस मुहिम का उद्देश्य भारत को आर्थिक और शारीरिक रूप से मजबूत राष्ट्र बनाना है। लेकिन यह बदलाव तभी संभव होगा जब हम ‘स्वस्थ भारत’ के सपने को सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी न मानें, बल्कि इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। वरना, वह दिन दूर नहीं जब अस्पतालों में मोटापे से ग्रस्त लोगों की लंबी कतारें होंगी।
स्वस्थ भारत की ओर: मोदी की मुहिम से घटेगा मोटापा!
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