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दिल्ली में आप की फैलाई कीचड़ में खिला भाजपा का कमल

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महेन्द्र प्रसाद सिंगला
दिल्ली चुनावों मे आम आदमी पार्टी की पराजय के साथ ही दिल्ली में उसका लगातार दस साल से भी अधिक का शासन समाप्त हो गया है। भाजपा भारी बहुमत से विजयी हुई है। यूॅं तो चुनावों में राजनीतिक जीत-हार सामान्य या आम बात होती है, लेकिन दिल्ली की राजनीतिक स्थिति के मद्देनजर इन चुनाव परिणामों का विशेष महत्त्व है, क्योंकि इसका प्रभाव केवल दिल्ली की राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर पूरे देश की राजनीति पर पडेगा। दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश है। यह एक छोटे राज्य का बडा चुनाव है। इस चुनाव पर पूरे देश की निगाहें थीं।
यदि देश के 2014, 2019 तथा 2024 के आम लोकसभा चुनावों की बात की जाए, तो जहॉं एक ओर देश में दशकों तक शासन करने वाली, देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस एक बार भी खाता तक नहीं खोल पाई, वहीं दूसरी ओर दिल्ली में एक दशक तक एकछत्र राज करने वाली आम आदमी पार्टी भी एक भी सीट नहीं जीत पाई। अजीब विरोधाभास है कि दशकों बाद देश में अपने अकेले दम पर पहली बार सत्ता में आने वाली और दूसरी बार भी और भी अधिक बहुमत से आने वाली भाजपा भी दिल्ली में सत्ता से वंचित ही रही और अब 2025 में आप को पराजित करके सत्ता में आने में सफल हुई है, जबकि कांग्रेस 2015, 2020 तथा 2025 लगातार तीनों चुनावों में शून्य सीट पर ही बनी रही।
केजरीवाल देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करके देश में एक नई राजनीति के आगाज के साथ राजनीति में आए थे। उन्होंने देश में व्याप्त राजनीतिक भ्रष्टाचार रूपी गटर को साफ करने की बात की थी। उन्होंने देश की राजनीति को लेकर अनेक बातें की थीं। देश की तरक्की और विकास के वादे किए। शासन-प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात की। राजनीतिक जीवन में सादगी और सुचिता की बात की। देश की जनता ने उन पर अपार विश्वास भी किया तथा 2015 और 2020 में प्रचंड बहुमत से उन्हें दिल्ली की सत्ता सौंप दी, लेकिन केजरीवाल दिल्ली की जनता के इस विश्वास को बनाए नहीं रख सके।
विशेष बात यह थी कि केजरीवाल के राजनीतिक पदार्पण के समय दिल्ली और केन्द्र में, दोनों जगह कांग्रेस की सरकारें थीं और उन्होंने दोनों ही सरकारों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए थे। इतना ही नहीं, उन्होंने देश के लगभग अन्य सभी नेताओं को भी भ्रष्ट बताने में कोई कसर नहीं छोडी। उन्होंने दिल्ली की तत्कालीन मुख्यमंत्री के निवास को भी अपने आक्रोश का निशाना बनाया। उन्होंने देश के सभी नेताओं को भ्रष्ट और बेईमान बताने के साथ-साथ अपने आप को स्वयं ही ईमानदार और फिर कट्टर ईमानदार होने की घोषणा कर दी।
यदि केजरीवाल के राजनीतिक सफर की बात की जाए, तो उनकी पूरी राजनीति विरोधाभासी रही है। उन्होंने जिन नेताओं और पार्टियों पर भ्रष्ट होने के आरोप लगाए थे, वे सभी आज आप के सहयोगी और समर्थक हैं। एक ओर वे अपने किए गए कामों को गिनाते नहीं थकते, तो वहीं दूसरी ओर जब उन्हें उन्हीं कामों को लेकर सवालों के कठघरे में खडा किया जाता है, तो वे एलजी और केन्द्र सरकार पर आरोप लगाते हैं कि वे उन्हें काम नहीं करने देते। अपनी कमियों और नाकामियों का दोश दूसरों के सिर थोपना उनका स्वभाव रहा है। दिल्ली की साफ-सफाई को लेकर भी वे दिल्ली नगर निगम के भाजपा के पास होने की बात करते थे, लेकिन नगर निगम के अपने पास आने पर भी वह दिल्ली की साफ-सफाई को लेकर कोई खास काम नहीं कर पाए। उनके समस्त बयान विरोधाभासी होते हैं। सादगी की बात करने वाले तथा सत्ता में आने से पहले मुख्यमंत्री आवास पर सवाल उठाने वाले, सत्ता में आने पर अपने लिए षीष महल बनवाने में भी संकोच नहीं करते। किसी भी प्रकार का आरोप लगने मात्र से ही पद त्याग करने तक राजनीतिक सुचिता की बात करने वाले केजरीवाल, भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जाने पर भी अपना मुख्यमंत्री का पद छोडने के लिए तैयार नहीं होते, जबकि अपने ही मंत्रियों को जेल जाने पर उन्हें मंत्री पद से हटा देते हैं। उनकी राजनीति सच के स्थान पर झूठ की, ईमानदारी के स्थान पर कट्टर बेईमान की, सादगी के स्थान पर ऐसो-आराम व सुख-सुविधाओं की तथा सुचिता के स्थान पर दूशित भाव से भरी हुई रही है। दिल्ली की जनता ने आषा और उम्मीद के साथ केजरीपाल पर विष्वास किया था, लेकिन वे उस विष्वास की कसौटी पर खरे नहीं उतर सके। उन्होंने अपने राजनीतिक कारनामों से जनता का विष्वास खंडित कर दिया। वे यमुना को साफ नहीं करा सके, बल्कि इसके बारे में एक बचकाना व आपत्तिजनक बयान दे दिया कि हरियाणा ने इसमें जहर मिला दिया है। निष्चित ही एक स्थिर और स्वस्थ बुद्धि का व्यक्ति ऐसी बात नहीं कह सकता। इसके साथ ही भाजपा पर एक हास्यापसद आरोप यह भी लगा दिया कि वह आप के विधायकों को 15-15 करोड में खरीदना चाहती है। केजरीवाल की भाशा और स्वभाव अहंकारी रहे हैं। ‘हम दिल्ली के मालिक हैं‘, ‘एलजी कौन होता है’ और ‘मोदी जी इस जन्म में तो आप हमें हरा नहीं सकते’, जैसे उनके वक्तव्य इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं। वे मुख्यमंत्री पद के अहंकार में भूल गए कि दिल्ली की मालिक दिल्ली की जनता है और दिल्ली एक केन्द्र शासित प्रदेश है, जिसमें कुछ संवैधानिक अधिकार एलजी के भी होते हैं। वे मुख्यमंत्री के संवैधानिक पद पर हैं, दिल्ली के निरंकुश शासक या शहंशाह-ए-आलम नही है।  
जिस राजनीतिक गटर को साफ करने का वादा करके केजरीवाल राजनीति में आए थे, वह उसे साफ तो नहीं कर पाए, हॉं, बिना बहुमत में आए, सरकार बनाकर उसी गटर में स्नान अवष्य करने लगे। षराब घोटाले में जेल जाने पर भी मुख्यमंत्री के पद पर बने रहकर, राजनीतिक गटर के भ्रष्टाचार रूपी कीचड का आचमन भी कर लिया। केजरीपाल ने दिल्ली की अपनी राजनीति से, राजनीतिक गटर की इस कीचड को और भी अधिक बढाया है और इसे पूरी दिल्ली में फैला दिया है और उसी में भाजपा का कमल खिला है।

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