जब लोकसभा चुनावों को बस कुछ ही महीने रह गए हैं, ऐसे में पांच विभूतियों को भारत रत्न देने का ऐलान करने को भाजपा की चुनावी रणनीति माना जा रहा है। हालांकि राजनीतिक गलियारे में इसे ‘चुनाव रत्न’ भी कहा जाने लगा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को तीसरे टर्म में भी सरकार बनने का पूरा विश्वास है। इसके बावजूद भाजपा किसी भी स्तर पर कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहती है। यही वजह है कि एक साल में तीन भारत रत्न देने का नियम तोड़ते हुए मोदी सरकार ने पांच लोगों को इस सम्मान से विभूषित करना का फैसला लिया है। इसमें सबसे ज्यादा चौंकाने वाला फैसला कांग्रेस के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देने का है।
भारत में आर्थिक उदारीकरण के जनक माने जाने वाले राव को भारत रत्न देकर जहां दक्षिण को साधने का प्रयास किया गया है, वहीं किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह और कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को सम्मानित करके भाजपा ने किसानों को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है। वैसे भी दो दिन बाद किसान संगठन दिल्ली कूच करने वाले हैं। 13 महीने तक एमएसपी और तीन कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले किसान एक बार फिर भाजपा के खिलाफ हुंकार भरने की तैयारी में हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और कुछ हद तक मुसलमान पिछली बार के आम चुनाव में भाजपा के पक्ष में चले गए थे। इसके पीछे वर्ष 2013 में हुआ मुजफ्फपुर दंगा था। इस दंगे ने जाटों को भाजपा के साथ खड़ा कर दिया था। यही वजह है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 27 लोकसभा सीटों में से 19 पर भाजपा को सफलता मिली थी।
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इस बार भाजपा को सीटें कम आने की आशंका है। यही वजह है कि जाटों और किसानों को लुभाने के लिए चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की गई। इसका एक फायदा यह भी हुआ कि सपा के साथ गठबंधन करने जा रही राष्ट्रीय लोकदल के कदम ठिठक गए हैं और आएलडी सुप्रीमो और चौधरी चरण सिंह के पौत्र जयंत सिंह पत्रकारों के सामने यह कहने को मजबूर हो गए हैं कि अब किस मुंह से भाजपा को इंकार करूं। भाजपा-आरएलडी गठबंधन की औपचारिक घोषणा कभी भी हो सकती है। कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भी किसानों को ध्यान में रखकर भारत रत्न दिया गया है, भले ही स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने में कोताही बरती गई हो।
पिछले नौ-दस साल तक उपेक्षा करने वाली भाजपा ने लालकृष्ण आडवानी को भारत रत्न देकर राम मंदिर आंदोलन से जुड़े हिंदुओं को एक बार फिर भावनात्मक रूप से अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है। कर्पूरी ठाकुर को भी भारत रत्न देने के पीछे बिहार की दलित और ओबीसी जातियों को अपने साथ लाने की मंशा है। भाजपा को इस बात का शक है कि इस बार पिछला रिकार्ड दोहराना काफी मुश्किल होगा। दो दिन बाद भाजपा-जदयू का नया गठबंधन फ्लोर टेस्ट पर अपना बहुमत साबित नहीं कर पाता है (जिसकी आशंका बिलकुल नहीं है) तो बिहार में कर्पूरी ठाकुर के बहाने लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास किया जा सकता है।
-संजय मग्गू
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