संजय मग्गू
दीपावली में बस दो सप्ताह ही बचे हैं। उससे पहले ही दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा के लगभग सभी जिलों में वायु गुणवत्ता सूचकांक दो सौ से पार चला गया है। वायु प्रदूषण ने धीरे-धीरे लोगों को अपनी गिरफ्त में लेना शुरू कर दिया है। यदि यही हालात रहे, तो इस बार भी पिछले कई वर्षोँ की तरह लोगों का सांस लेना काफी मुश्किल हो जाएगा। वायु प्रदूषण रोक पाना किसी भी सरकार के वश में नहीं है। सरकार चाहते जितने प्रयास कर ले, इसे नहीं रोका जा सकता है। हां, जब प्रदेश की जनता खुद सरकार के प्रयास में सहभागी बने, तो जरूर पिछले कई सालों से बढ़ रहे प्रदूषण पर अंकुश लगाया जा सकता है। जन भागीदारी ही वह एकमात्र रास्ता है जिस पर चलकर प्रदेश में बढ़ते प्रदूषण पर काबू पाया जा सकता है। सबसे पहले को किसानों को पराली जलाना बंद करना होगा। हरियाणा और पंजाब में काफी प्रयास के बाद भी खेतों में पराली का जलना बंद नहीं हुआ है। रात होते ही किसान चोरी-छिपे पराली जलाने लगते हैं। पराली जलाने की वजह से ही पूरा प्रदेश वायु प्रदूषण की गिरफ्त में है। सरकार, सुप्रीमकोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक ने पराली जलाने पर जुर्माना लगाने की व्यवस्था की है ताकि पराली जलाने की घटनाओं को कम किया जा सके। पराली जलाने से पैदा हुआ धुआं सिर्फ जलने वाली जगह के आसपास के लोगों को ही प्रभावित नहीं करती है, बल्कि यह हवा के माध्यम से दूसरी जगहों पर जाकर भी लोगों को प्रभावित करती है। इसके चलते लोगों में कई तरह की बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं पैदा ही जाता हैं। प्रदूषण के कारण भारत में मरने वालों की संख्या कम नहीं है। यही वजह है कि सुप्रीमकोर्ट पंजाब और हरियाणा सरकारों से नाखुश है क्योंकि ये सरकारें पराली जलने से रोक नहीं पा रही हैं। सुप्रीमकोर्ट ने तो यहां तक कहा है कि केंद्र सरकार की ओर से गठित कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट बिना दांत वाला शेर है जो पराली जलाने से रोकने के मामले में कुछ नहीं कर सकता है। दोनों राज्यों की सरकारों को फटकारते हुए सुप्रीमकोर्ट ने तो यहां तक कहा कि किसानों के खिलाफ किसी तरह की कठोर कार्रवाई नहीं करना चाहती हैं प्रदेश सरकारें। इसके साथ ही साथ सड़कों पर उड़ी धूल और कूड़ा करकट को जलाने से भी प्रदूषण फैल रहा है। हरियाणा के कई जिलों में कूड़ा उठाने वाले कर्मचारी कूड़ा उठाने की जगह उसे वहीं पर जला देते हैं जिसकी वजह से आसपास के लोगों का सांस लेना भी मुश्किल हो रहा है। कर्मचारियों की लापरवाही लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है। इसमें आग में पड़ने वाली घी की तरह काम कर रही है सड़कों पर उड़ती धूल। सड़कों पर बने गड्ढे से होकर जब वाहन गुजरते हैं, तो आसपास धूल छा जाती है जिससे प्रदूषण में बढ़ोतरी होती है।
संजय मग्गू