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राजनीति में अब नई इबारत लिखेंगी प्रियंका गांधी

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निर्मल रानी
देश में पिछले दिनों जहाँ महाराष्ट्र व झारखण्ड में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए, वहीं विभिन्न राज्यों की कई सीटों पर विधानसभा व लोकसभा उपचुनाव भी कराये गये। इन्हीं में एक केरल की वायनाड संसदीय सीट भी थी जिस पर 2024 के आम चुनावों में राहुल गांधी रायबरेली के साथ वायनाड से भी विजयी हुए थे। बाद में राहुल को वायनाड सीट छोड़कर रायबरेली की सीट अपने पास रखनी पड़ी। राहुल ने यहाँ 6,47,445 वोट प्राप्त करके  3,64,422 के अंतर से भारी जीत हासिल की थी। इसी सीट पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने प्रियंका गाँधी को पहली बार लोकसभा चुनाव में उतारा। प्रियंका को यहाँ राहुल गाँधी से भी अधिक मत हासिल हुये और उन्होंने चार लाख से अधिक वोटों के अंतर से ऐतिहासिक जीत हासिल की। जिस समय प्रियंका की शानदार जीत व संसदीय राजनीति में उनके सक्रिय व अधिकृत प्रवेश की पटकथा वायनाड की जनता लिख रही थी उस समय देश का मीडिया केवल महाराष्ट्र के चुनाव परिणामों को महिमामंडित करने में लगा था।        
गौर तलब है कि अपने व्यक्तित्व में अपनी दादी इंदिरा गांधी के दर्शन का एहसास कराने वाली प्रियंका गांधी को पहली बार इतने भारी मतों से उस केरल राज्य के लोगों ने चुना है जोकि देश का सबसे शिक्षित राज्य है। और भाजपा तमाम प्रयासों के बावजूद यहां अपनी दाल गला नहीं पाती। केरल के लोग भाजपा को वोट क्यों नहीं देते इस पर कांग्रेस या विपक्ष क्या कहता है उससे ज्यादा अहमियत इस बात की है कि स्वयं भाजपा इस बारे में क्या सोचती है। इस विषय पर जब मार्च 2021 में केरल भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व केरल भाजपा के अध्यक्ष रहे वरिष्ठ नेता राजागोपाल से पूछा गया कि बीजेपी केरल में अपनी राजनीतिक जमीन क्यों नहीं तैयार कर पाती। इस प्रश्न के उत्तर में राजगोपल ने कहा, केरल अलग तरह का प्रदेश है। दो-तीन प्रमुख कारण हैं।
एक तो यह कि केरल की साक्षरता दर 90 प्रतिशत है।  यहां के लोग सोचते हैं, तार्किक हैं।  ये शिक्षित लोगों की आदतें हैं।  दूसरी बात यह कि केरल में 55 प्रतिशत हिंदू हैं और 45 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं। हर कैलकुलेशन में ये चीज आती है। ऐसे में केरल की तुलना किसी और राज्य से नहीं की जा सकती है। केरल भाजपा नेता राजागोपाल द्वारा पेश की गयी इसी थ्योरी को यदि उलट दिया जाये तो समझा जा सकता है कि भाजपा जिन राज्यों में अपना जनाधार बढ़ा रही है, उसकी दरअसल वजह क्या है।
बहरहाल केरल की शिक्षित जनता ने पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ने वाली गाँधी-नेहरू परिवार की बेटी को वायनाड से रिकार्ड  विजयश्री दिलवाकर अपना मंतव्य स्पष्ट कर दिया कि देश की शिक्षित व तर्कपूर्ण जनता को गाँधी-नेहरू परिवार की इस बेटी से काफी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। राहुल गाँधी ने यों ही नहीं कहा था कि यदि प्रियंका 2024 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से नरेंद्र मोदी के विरुद्ध चुनाव लड़तीं तो निश्चित रूप से वे मोदी को पराजित कर देतीं। क्योंकि 2019 में जिस वाराणसी में नरेंद्र मोदी ने चार लाख 79 हजार वोटों के भारी अंतर से जीते दर्ज की थी, वह अंतर इस बार घटकर एक लाख 52 हजार रह गया है। यहाँ मोदी के विरुद्ध कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने वाले अजय राय को चार लाख 60 हजार वोट मिले थे। इस लिहाज से वाराणसी से मोदी के विरुद्ध प्रियंका की उम्मीदवारी देश की राजनीति की एक नई पटकथा लिख सकती थी। 
प्रियंका गाँधी का संसदीय राजनीति  में प्रवेश ऐसे समय में हुआ है जब सत्तरूढ़ भाजपा साम, दाम, दंड, भेद सभी तरीके अपनाकर सत्ता में बनी रहना चाहती है। जिस तरह पूर्व में प्रियंका गाँधी ने महिलाओं की सुरक्षा के हक में आवाजें बुलंद की है, कानून व्यवस्था के मुद्दे उठाये हंै। दलितों, किसानों व गरीबों के लिये आवाज उठाई है, उसी वर्ग को प्रियंका गाँधी के लोकसभा पहुँचने से काफी उम्मीदें जुड़ी हुई हैं। माना जा सकता है कि प्रियंका समाज के शोषित व पीड़ित समाज की आवाज तो बनेंगी ही साथ ही राजनीति में अब एक नई इबारत भी लिखेंगी। 
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)

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