संजय मग्गू
पूरी दुनिया में मानसिक स्वास्थ्य संकट गहराने लगा है। लोग इसके चलते या तो अवसाद में जीने लगे हैं या फिर आक्रामकता और हिंसा की ओर बढ़ रहे हैं। इसका कारण यह माना जा सकता है कि लोग अपनी वर्तमान स्थिति से असंतुष्ट हैं। वैसे वर्तमान से असंतुष्ट होना मानव जाति का आदिम स्वभाव है। यदि मनुष्य वर्तमान से संतुष्ट होता, तो एक बात तय है कि इतनी खूबसूरत दुनिया का निर्माण कर पाने में मनुष्य सक्षम नहीं होता। जीवन के सभी क्षेत्र में इतना विकास नहीं हुआ है। तब हम आज भी एक छोटे से नदी-नाले को पार नहीं कर पाए होते। हमारे पुरखों का यह असंतोष, असंतुष्टि सकारात्मक थी। वे अपने असंतोष को लेकर अवसाद में नहीं गए। उन्होंने अपनी असंतुष्टि को लेकर हिंसा या आक्रामकता का रास्ता नहीं अपनाया। किसी को मारा-पीटा नहीं। बल्कि उसका रचनात्मक उपयोग किया। जब भी उनके सामने कोई समस्या खड़ी हुई तो उन्होंने उसका निदान खोजा। नदियों पर पुल बनाया, कच्चा अनाज या मांस खाने में दिक्कत थी, तो उन्होंने दो पत्थरों को रगड़कर आग पैदा की और अनाज या मांस को भूनकर खाना सीखा। आवागमन में दिक्कत थी तो बैलगाड़ी या रथों का आविष्कार किया। इस तरह की न जाने कितनी खोजें की और अपने उत्तराधिकारियों को सौंप गए। आज समाज में मानसिक स्वास्थ्य गड़बड़ाने की वजह से लोग हिंसक हो रहे हैं। बात-बेबात पर सामने वाले की हत्या कर रहे हैं, उन्हें चोट पहुंचा रहे हैं या फिर आत्मघात कर रहे हैं। दोनों ही स्थितियां त्रासद हैं। हमें अपने मानसिक अवसाद या हिंसात्मक प्रवृत्ति से निजात पाना है, तो छोटी-छोटी बातों में खुश होना सीखना होगा। छोटी-छोटी खुशियां हमें जीने का नया रास्ता दिखा देती हैं। यदि परिवार के किसी सदस्य ने कोई छोटी सी भी उपलब्धि हासिल की है, तो खुलकर जश्न मनाइए, हंसिए, खिलखिलाइए। यह खुश तनाव को न केवल कम करेगी, बल्कि रचनात्मक सकारात्मक सोचने पर मजबूर करेगी। अपने असंतोष को नई राह दिखाइए, नया तेवर देकर अपने देश और समाज के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है। इससे परिवार को भी फायदा होगा। सबसे ज्यादा इस सीख की जरूरत युवाओं को है। वे अभी अपना जीवन शुरू करने जा रहे हैं। उनके सामने नित नई चुनौतियां आकर खड़ी हो जाएंगी, सकारात्मक सोच ही उन्हें चुनौतियों से लड़ने को संबल प्रदान करेगा। परीक्षा में पास होने का दबाव है, नौकरी खोजने का दबाव है, नौकरी को बरकरार रखने का दबाव है, ऐसी न जाने की कितनी चुनौतियां युवाओं के सामने हैं। यदि वह इन्हें सहजता से स्वीकार नहीं करते हैं, तो इसके परिणाम बुरे हो सकते हैं। मानसिक अवसाद से घिर सकते हैं। इससे बचना है, तो चेहरे पर मुस्कुराहट को सजानी होगी। खिले चेहरे ही सभी तरह की समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं। समस्याएं तो जीवन का हिस्सा है। इनसे भागकर नहीं जिया जा सकता है। तो फिर हंसकर क्यों न जिया जाए।
संजय मग्गू