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मानवाधिकार के लिए विख्यात मैरा पाइबी पर उठते सवाल

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मणिपुर में एक शब्द बहुत लोकप्रिय है मैरा पाईबी। इसका मतलब होता है मणिपुर की मशाल वाहक महिलाएं। आप लोगों को सन 2004 में 17 असम राइफल्स और आर्म्ड फोर्स स्पेशल पॉवर एक्ट यानी अफ्स्पा के खिलाफ मणिपुर में 12 महिलाओं का नग्न होकर प्रदर्शन करने की घटना तो याद ही होगी। पुलिस और अफ्स्पा के खिलाफ लंबे समय तक संघर्ष करने के बाद नग्न होकर प्रदर्शन करने वाली महिलाएं मैरा पाइबी की सदस्य थीं। इन महिलाओं ने बैनर पर लिख रखा था कि इंडियन आर्मी रेप अस। सोलह वर्षों तक अफ्स्पा के खिलाफ गांधीवादी तरीके से सत्याग्रह करने वाली इरोम शर्मिला के पीछे अगर कोई संगठन खड़ा था, तो वह मैरा पाइबी ही था। मैरा पाइबी को मणिपुर में बहुत सम्मानजनक दर्जा हासिल है।

मानवाधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली महिलाओं का यह समूह हर उस बात का विरोध करता रहा है जिसमें किसी महिला के साथ नाइंसाफी हुई हो। मानवाधिकारों की सुरक्षा के लिए पूरी तरह समर्पित माने जाने वाले इस संगठन पर मणिपुर की ताजा हिंसात्मक घटनाओं के बाद सवाल उठने लगे हैं। कुछ कुकी और पुलिस वालों का कहना है कि 3 मई के बाद मणिपुर में जितनी भी हिंसक घटनाएं और कुकी महिलाओं के साथ दुराचार की घटनाएं हुई हैं, उनमें से कई घटनाओं में मैरा पाइबी की सदस्य महिलाओं की भूमिका रही है। सुरक्षा बलों का तो यहां तक आरोप है कि जब वे लोग उपद्रवियों को पकड़ने के लिए तलाशी अभियान चलाते हैं, तो मैरा पाइबी की महिलाएं उसमें बाधा डालती हैं। वे उपद्रवियों की ढाल बनकर उन्हें भगाने का काम करती हैं।

कुकी समुदाय का आरोप है कि जब भी हमारे समुदाय पर मैतोई लोग हमला करते हैं, उनकी ढाल बनकर मैरा पाइबी की सदस्य आगे चलती हैं। कुकी महिलाओं के पकड़ में आने पर दुष्कर्म के लिए उकसाती हैं। अब इन सभी आरोपों में कितनी सच्चाई है, कहा नहीं जा सकता है। कहा तो यह भी जा रहा है कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह जब अपना इस्तीफा देने जा रहे थे, तो उनके इस्तीफे को फाड़कर फेंकने वाली महिला मैरा पाइबी से जुड़ी हुई थी। मैरा पाइबी नहीं चाहती थी कि मैतोई समुदाय से आने वाले सीएम अपना इस्तीफा दें। मैरा पाइबी संगठन की महिलाओं को मैतोई समाज में इमा यानी मां का दर्जा हासिल है।

मैरा पाइबी संगठन की महिलाएं इन दिनों मणिपुर में हो रही हिंसा को युद्ध मानती हैं। उनका कहना है कि युद्ध को उसके दायरे में ही लड़ा जाना चाहिए। महिलाओं को इसमें हाथ नहीं लगाना चाहिए। जिसने भी यह सब किया है, उसने बहुत गलत किया है। बहरहाल, मणिपुर के हालात 80-85 दिन बीतने के बाद भी सामान्य नहीं हो पाए हैं। स्थानीय स्तर पर एक दूसरे समुदाय पर आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। इस भय और हिंसा भरे माहौल में किसके आरोप सही हैं, किसके गलत, यह कह पाना बहुत मुश्किल है।

 लेकिन इतना तो कहा जाएगा कि स्थानीय शासन-प्रशासन ने शुरुआती दौर में इस हिंसा को गंभीरता से नहीं लिया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के प्रयास भी रंग नहीं ला सके। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने भी कुछ खास प्रयास नहीं किया। केंद्र और राज्य सरकार की नींद तब खुली, जब शर्मसार करने वाला वीडियो वायरल हुआ।

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