आजकल चारों तरफ अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा की धूम है। यह प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होने जा रही है। मंदिर के और कार्यों की तरह प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम भी विवादों में है। कहा जा रहा है कि जब मंदिर पूरा बना ही नहीं है तो प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जा रही है? प्राण तो पूरा शरीर बनने के बाद ही डाला जाता है। दूसरा यह कि जब 1949 में रामलला की मूर्ति बाबरी मस्जिद में रखी गई थी या प्रकट हुई थी और 1992 में बाबरी विध्वंस के बाद तंबू मे वही मूर्ति रखी गई और अभी तक उसी की पूजा होती रही है तो उसी मूर्ति को क्यों नहीं प्रतिष्ठित किया जा रहा?
नई मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जा रही है? तीसरा यह कि प्राण प्रतिष्ठा करनी ही है तो जनवरी में क्यों की जा रही है? इसे नवरात्रों पर भी किया जा सकता था, लेकिन जैसे मंदिर के बाकी मामलों में किसी की नहीं सुनी गई वैसे ही इस बार भी नहीं सुनी जा रही है। धर्म के सबसे शीर्ष पद पर विराजमान शंकराचार्यों की भी नहीं। इन सारे सवालों और विवादों का उत्तर एक है कि आम चुनाव नजदीक है। लाख टके का सवाल यह है कि क्या मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का लाभ भाजपा को मिलेगा?
अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नजरिए से देखें तो यह उनके लिए निर्णायक चुनाव है। वे अपने नेतृत्व में दो बार बहुमत की सरकार बना चुके हैं और तीसरी बार मैदान में उतरने जा रहे हैं। अगर इस बार वे सफल होते हैं तो प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद वे दूसरे प्रधानमंत्री होंगे जो इस करिश्मे को कर पायेंगे। इसलिए वे इस बार कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते। उनके तरकश में जितने तीर हैं सब आजमा लेना चाहते हैं। चाहे वह राम मंदिर का मुद्दा हो, काशी, उज्जैन, केदारनाथ और बद्रीनाथ के मंदिरों के कायाकल्प का हो, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाने का हो, महिला आरक्षण बिल हो, सीएए हो, वो सबका प्रयोग कर रहे हैं। अभी अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा की बात चल ही रही है कि उन्होंने सीएए को मुद्दा भी उठा दिया है।
अभी तक जितने सर्वे आए हैं सबमें भाजपा को अकेले दम पर तीन सौ से ज्यादा सीटें दी जा रही हैं। इन सर्वे एजेंसियों पर किसी को भरोसा नहीं है। ‘इंडिया’ गठबंधन बनने के बाद मोदी जी समेत पूरी भाजपा के मन में अपनी जीत को लेकर संशय बना हुआ है। भाजपा मानती है कि पश्चिम बंगाल, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना और हिमाचल में उसकी सीटें घटने जा रही हैं। जबकि यूपी, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी पुराना प्रदर्शन दोहराना मुश्किल ही होगा यानी इन राज्यों में भी बेहतरीन प्रदर्शन करने के बावजूद कुछ सीटें कम ही हो सकती हैं।
भाजपा को एक डर यह भी है कि शायद अब राम मंदिर का मुद्दा वह ज्वार न ला सके जो 1992 में मस्जिद विध्वंस के समय उठा था। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में जो पर्यटक पहुंचे हैं, उनमें अयोध्या तीसरे नंबर पर है। पहला नंबर वाराणसी का है तो दूसरा प्रयागराज का। केंद्र की मोदी सरकार, यूपी की योगी सरकारों के प्रयास के बावजूद अभी अयोध्या को वो मुकाम हासिल नहीं हो पाया जो काशी और इलाहाबाद को मिला हुआ है। जबकि हिंदुओं के सबसे बड़े आराध्य राम ही हैं।
डबल इंजन की सरकारों के सारे प्रयासों के बावजूद यूपी अभी देश में पर्यटन के मामले में पहले नंबर का प्रदेश नहीं बन पाया है। जबकि यहां काशी, मथुरा और प्रयागराज जैसे शीर्ष धार्मिक स्थल हैं। यह लोगों की मानसिकता को दर्शाता है। फिर यह भी जरूरी नहीं है कि जो लोग काशी और अयोध्या जा रहे हैं वे सभी भाजपा को वोट ही करेंगे। देश में हिंदू आबादी 80 प्रतिशत है जबकि भाजपा को अभी भी पिछले लोक सभा चुनाव में 37.36 प्रतिशत वोट ही मिले हैं। जबकि पुलवामा जैसा कांड हुआ और भारत ने पाकिस्तान पर हमला तक बोल दिया। बावजूद इसके हिंदुओं का करीब 42 प्रतिशत और बाकी समुदायों का वोट इसे नहीं मिला।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
-अमरेंद्र कुमार राय