हमारे देश को स्वाधीन कराने में असंख्य क्रांतिकारियों ने अपनी कुरबानी दी है। दुनिया में शायद सबसे ज्यादा कुरबानी देने और लंबे समय चलने वाला स्वाधीनता संग्राम भारत का ही रहा है। अंग्रेजों ने हमारे देश के नागरिकों पर बहुत अधिक जुल्म ढाए हैं। अंग्रेज अधिकारियों ने निर्दोष नागरिकों की हत्याएं की हैं, उनको झूठे मुकदमों में फंसाकर फांसी या आजीवन कारावास की सजाएं दी हैं। लेकिन इसके बावजूद हमारे देश के युवक-युवतियों का जोश न कम हुआ और न ही अंग्रेजों के खिलाफ उनका रोष कम हुआ।
इस आजादी की लड़ाई में छोटे-छोटे बच्चों ने भी अपनी कुरबानी दी है। कोमिल्ला का अंग्रेज कलेक्टर सीजीवी स्टीवेंस भारतीय क्रांतिकारियों के लिए एक काल की तरह था। कोमिल्ला चटगांव के पास स्थित बंगाल का एक जिला था। अब वह बांग्लादेश में है। स्टीवेंस ने कई क्रांतिकारियों को पकड़कर काफी लंबी-लंबी सजाएं दी थी। इससे लोगों में काफी रोष था। वह जानता था कि क्रांतिकारी उसकी जान के पीछे पड़े हैं। वह कभी भी हमला करके उसे मार सकते हैं।
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इससे वह घर के बाहर कम ही निकलता था। एक दिन की बात है। आठवीं पढ़ने वाली दो लड़कियां बग्घी से उसके घर पहुंची और एक कार्यक्रम के सिलसिले में उससे मिलने की बात कही। उसके अधिकारी ने उससे मिलवाया, तो उन लड़कियों ने अपना प्रार्थनापत्र उसकी ओर बढ़ाया। तभी एक लड़की ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाली और दो फायर कर दिए। वह मुंह के बल वहीं पर गिर पड़ा। उसकी मौत हो गई। लड़कियां तुरंत गिरफ्तार कर ली गईं और आठ दिन में ही उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। सजा सुनने के बाद भी लड़कियों के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। इन लड़कियों का नाम शांति घोष और सुनीति चौधरी था।
-अशोक मिश्र
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