हेमा रावल
01 फरवरी को प्रस्तुत केन्द्रीय बजट में ग्रामीण सड़कों के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) और अन्य ग्रामीण सड़क परियोजनाओं के तहत लगभग 70,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. इस राशि का उपयोग देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क को मजबूत करने और बुनियादी ढांचे के विकास में किया जाएगा. दरअसल आज भी हमारे देश में कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां सड़क का अभाव है. इनमें उत्तराखंड भी शामिल है. इस पहाड़ी राज्य के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां सड़कों का अभाव विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई हैं. राज्य के बागेश्वर जिला स्थित गरुड़ ब्लॉक का सुराग और भगदानू गांव इसका उदाहरण है. सुराग पंचायत स्थित इन दोनों गांवों की सड़कें आज भी बदहाल स्थिति में हैं. इन ग्रामीण इलाकों में सड़क निर्माण की मांग वर्षों से की जा रही है, लेकिन अभी तक इसका कोई ठोस समाधान नहीं निकला है.
इस संबंध में सुराग के 70 वर्षीय बुजुर्ग केदार सिंह कहते हैं कि “हमें अपने जीवन में रोजमर्रा की सुविधा के लिए भी संघर्ष करनी पड़ती है. गांव में सड़क नहीं होने के कारण बहुत सारी कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है. सबसे अधिक परेशानी बारिश के दिनों में होती है जब कच्ची सड़क होने के कारण वह फिसलन भरी हो जाती है. जिस पर से इंसान और जानवरों का गुजरना मुश्किल हो जाता है. मवेशी पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था का एक बड़ा माध्यम होता है. प्रतिदिन मवेशियों को चराने के लिए पहाड़ों पर ले जाना पड़ता है. लेकिन बारिश के दिनों में अक्सर मवेशी कच्ची सड़क से फिसल कर पहाड़ के नीचे गिर जाते हैं. बहुत ही मुश्किल होता है ऐसे समय में हमें अपने कामों को करना.” वह कहते हैं कि पहाड़ों पर जब बारिश होती है तो कई दिनों तक चलती है, ऐसे में मवेशियों को भूखा नहीं रखा जा सकता है. अगर पक्की सड़क होती तो हमारा जीवन भी आसान होता.
सड़कों का जाल पहाड़ों की जीवन रेखा माना जाता है, लेकिन उत्तराखंड के दूरस्थ गांवों में सड़क कनेक्टिविटी अब भी एक चुनौती बनी हुई है. पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने सड़कों के निर्माण पर जोर दिया है, लेकिन विभिन्न कारणों से कई सड़कें आज भी अधूरी पड़ी है. करीब 500 की आबादी वाले सुराग गांव के लोगों को भी सड़क का इंतज़ार है. इस संबंध में 45 वर्षीय नंदी देवी बताती हैं कि ‘सुराग गांव के लिए स्वीकृत सड़क का निर्माण अभी तक नहीं हो सका है, जिससे ग्रामीणों में निराशा है. हालांकि इसके लिए गांव वालों ने कई बार शासन-प्रशासन से मांग की, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है. हालांकि सुराग से भगदानू जाने वाली सड़क का सर्वेक्षण भी किया जा चुका है, लेकिन इसके बाद कोई ठोस प्रगति नहीं हुई.’ वह कहती हैं कि सड़क नहीं होने से सबसे अधिक परेशानी महिलाओं और बुजुर्गों को होती है, जिन्हें जरूरत के समय गाड़ी उपलब्ध नहीं हो पाती है. सड़क नहीं होने के कारण कोई भी गाड़ी इस क्षेत्र में आने को तैयार नहीं होती है. बरसात के दिनों में कच्ची सड़कें पूरी तरह से कीचड़ में बदल जाती हैं, जिससे गाड़ियों का आवागमन बहुत मुश्किल हो जाता है.
सड़क की खराब हालत पर 10वीं में पढ़ने वाली गांव की एक किशोरी भावना रावल कहती है कि ‘हमारा स्कूल राजकीय इंटर कॉलेज, सैलानी गांव से लगभग 9 किमी दूर है. जहां पहुँचने के लिए मुझे रोजाना 5 किमी इसी कच्ची सड़क से होकर जाना पड़ता है. रोड नहीं होने की वजह से यहां गाड़ियां नहीं चलती हैं. अन्य मौसम में हमें बहुत अधिक दिक्कत नहीं होती है लेकिन बारिश के दिनों में हम बच्चे अक्सर कीचड़ से सने स्कूल ड्रेस में स्कूल पहुंचते हैं. कई बार अत्याधिक वर्षा के कारण हम स्कूल तक नहीं जा पाते हैं. जिससे हमारी पढ़ाई का नुकसान होता है.’ वहीं एक अन्य किशोरी 18 वर्षीय कविता का कहना है कि ’बरसात और सर्दियों के दिनों में हमें स्कूल जाने में बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. साल के आधे महीने हमारी पढ़ाई इन्हीं कारणों से बाधित रहती है. कच्ची और खराब सड़क होने की वजह से पहाड़ से गिरने का भी खतरा बना रहता है. जरूरत के समय यदि कहीं जाना हो तो कोई साधन ही नहीं मिलता है.’
इस संबंध में सुराग की ग्राम प्रधान चंपा देवी कहती हैं कि सुराग और भगदानू गांव में सड़क या तो पिछले कई वर्षों से निर्माणाधीन हैं या पूरी तरह अनुपलब्ध हैं. जिससे हर वर्ग को परेशानी हो रही है. पिछले साल ग्रामीणों ने सुराग-भगदानू सड़क निर्माण के लिए आंदोलन और धरना प्रदर्शन भी किया था. लेकिन अभी तक समस्या का हल नहीं निकल सका है. पंचायत की ओर से भी इस सिलसिले में लगातार प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन इसका कोई ठोस हल नहीं निकल सका है. वहीं सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए एसडीएम गरुड़ जितेंद्र वर्मा कहते हैं कि कई बार प्राकृतिक आपदा के कारण भी निर्मित सड़क टूट जाती है. जिससे लोगों को परेशानियाँ उठानी पड़ती हैं. इसके अतिरिक्त कुछ जगहों पर सड़क निर्माण नहीं होने के पीछे अन्य कारण भी हैं. गांव तक सड़क निर्माण के लिए कुछ निजी ज़मीनों का अधिग्रहण करणी होगी. जिसके लिए ग्रामीणों से बातचीत चल रही है. वह कहते हैं कि सरकार गांव गांव तक सड़क का जाल बिछाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस दिशा में लगातार प्रयास जारी है. सुराग और भगदानू गांव में भी सड़क निर्माण के लिए आ रही बाधाओं को दूर कर लिया जाएगा. जिससे गांव वालों का जीवन आसान हो सके.
उत्तराखंड में अब तक कुल 33,512 किमी सड़कों का निर्माण किया जा चुका है, और 171 किमी नई सड़कों के निर्माण का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए रखा गया है. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत पिछले दो वर्षों में राज्य में 1,481 किमी नई सड़कें बनी हैं, जिससे 519 नई सड़कों और 195 पुलों का लाभ ग्रामीण क्षेत्रों को मिला है. इससे दूरस्थ गांवों को मुख्य सड़कों से जोड़ा गया है, जिससे यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और व्यापार के अवसरों में वृद्धि हुई है. लेकिन सुराग और भगदानू गांवों की सड़कें आज भी बदहाल स्थिति में हैं, जिससे स्थानीय लोगों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है. हालांकि केन्द्रीय बजट में जिस प्रकार से ग्रामीण सड़कों के विकास के लिए एक बड़ी राशि आवंटित की गई है, उससे आशा की जा सकती है कि इसका लाभ उत्तराखंड के इन दूरस्थ गांवों को भी मिलेगा. इसके अतिरिक्त यदि सरकार, प्रशासन और स्थानीय लोगों की भागीदारी से सड़क निर्माण कार्य को प्राथमिकता दी जाए, तो जल्द ही ऐसे गांवों में विकास की नई रोशनी पहुंच सकती है. (चरखा)
गांव में विकास के लिए सड़क जरूरी Village News Hindi
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