संत तुकाराम का जन्म महाराष्ट्र के पुणे के देहू नामक गांव में हुआ था। कहा जाता है कि इनके माता-पिता काफी संपन्न थे। जमींदार परिवार में पैदा होने के बावजूद वे कफी शांत और सरल स्वभाव के थे। वे लोगों को हमेशा सच बोलने, हिंसा न करे और सादगी से रहने का उपदेश दिया करते थे। कुछ इतिहासकारों का यह भी कहना है कि जब ये दस साल के थे, इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। इसी दौरान महाराष्ट्र में भीषण अकाल पड़ा। लोगों ने इनसे काफी रकम उधार ले लिया और उसे चुकाया भी नहीं। सरल स्वभाव के कारण धीरे-धीरे इनकी सारी संपत्ति खर्च हो गई।
इसी अकाल के दौरान इनकी पत्नी और बालक की मौत हो गई। इसके बाद इनका दूसरा विवाह जीजाबाई नाम की लड़की से हुआ। यह स्वभाव से काफी कर्कशा थी। एक बार की बात है। तीन दिन तक संत तुकाराम खाने-पीने की व्यवस्था नहीं कर पाए। पति-पत्नी आखिर कब तक भूखे रहते। शाम को इन्होंने सोचा कि कहीं से कुछ मांगकर लाया जाए। वे गांव के बाहर पहुंचे, तो गन्ने के खेत के मालिक से कुछ गन्ने मांगे। खेत के मालिक ने ढेर सारे गन्ने काटे और उसका एक गट्ठर बनाकर संत तुकाराम को दे दिया। जैसे ही लोगो ने गन्ना देखा, लोगों ने मांगना शुरू कर दिया।
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गन्ना बांटते-बांटते जब संत तुकाराम घर पहुंचे, तो उनके पास एक ही गन्ना बचा। यह देखकर जीजाबाई काफी क्रोधित हुई। उसने भूख और क्रोध के चलते उसी गन्ने से संत तुकाराम को पीटना शुरू कर दिया। काफी देर तक पीटने की वजह से गन्ने के दो टुकड़े हो गए। तब तुकाराम ने हंसते हुए अपनी पत्नी से कहा कि गन्ने के दो टुकड़े हो गए हैं। एक तुम चूसो और एक मैं चूसता हूं। इस पर उसका गुस्सा शांत हुआ और वह बैठकर रोने लगी।
-अशोक मिश्र
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