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हंसिए और ठहाका लगाकर जोर से हंसिए

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संजय मग्गू
हंसना एक मानवीय गुण है। कहते हैं कि संपूर्ण प्रकृति में एक इंसान ही ऐसा प्राणी है जो किसी बात पर ठहाका लगा सकता है, अट्टाहास कर सकते हैं। लेकिन प्रसिद्ध जीव विज्ञानी जगदीश चंद्र बोस ने अपने विभिन्न प्रयोगों से यह साबित कर दिया कि हंसने पर सिर्फ इंसानों का ही विशेषाधिकार नहीं है। प्रकृति में जितने भी सजीव पाए जाते हैं, वह सब हंसते हैं। कुत्ता-बिल्ली से लेकर ऊंट हाथी तक हंसते हैं। पेड़-पौधे भी प्रसन्न होकर हंसते हैं। उन्हें भी खुशी का एहसास होता है, चोट लगने या काटे जाने पर वह भी रोते हैं। मान लिया। जगदीश चंद्र बोस की बात वैज्ञानिक प्रयोगों पर आधारित है, इसलिए उनकी बात को नकारा नहीं जा सकता है। लेकिन एक बात है किसी मनोरंजक बात पर ठहाका लगाना तो सिर्फ मनुष्यों को ही आता है। मनुष्येतर प्राणी भले ही हंसते हों, खिलखिलाते हों, ठहाका लगाते हों, लेकिन उनकी इन क्रियाओं की मनुष्यों को तो भनक तक नहीं लगती है। वह जब क्रोधित होते हैं, तो भी किसी को पता नहीं लगता है। लेकिन जब कोई नवजात शिशु सोते समय भी मुस्कुराता है, खेलते समय किलकारी मारता है, तो उसके आसपास रहने वाले लोगों को पता लग ही जाता है। कहते है कि हंसने से व्यक्ति बीमार कम पड़ता है, अवसाद उसे नहीं घेरती है। ठठाकर हंसने से शरीर की कई मांसपेशियां सक्रिय और मजबूत होती हैं। हंसना सेहत के लिए लाभदायक है। जब कोई बात हमें गुदगुदाती है, अच्छी लगती है, तो हम मुस्कुराते हैं। चेहरे पर हंसी आते ही पूरा शरीर खिल उठता है। लेकिन आज हालत यह है कि लोग खिलखिलाकर हंसना भूलते जा रहे हैं। यह कैसी विडंबना है कि लोगों को हंसना सिखाने के लिए, उन्हें हंसाने के लिए लॉफिंग क्लब बनने शुरू हो गए हैं। लोग शुल्क देकर या कभी निशुल्क हंसने के लिए लाफिंग क्लब जाते हैं। ऐसा नहीं है कि चौबीस घंटे में किसी व्यक्ति के पास हंसने, ठहाका लगाने या मंद मंद मुस्कान बिखेरने के मौके नहीं आते हैं। आते हैं, लेकिन दांत निपोरकर हंसने या तालियां पीटते हुए ठहाका लगाने से रेपुटेशन खराब होने की आशंका होती है, इसलिए लोग विद्रूप हंसी हंसकर मौके को गंवा देते हैं। हंसते ही आसपास का वातावरण प्रफुल्लित हो जाता है, मन के तार प्रसन्नता का अनुभव करते हुए कंपायमान हो जाते हैं। शरीर  प्रफुल्लित हो जाता है। शरीर से तरह-तरह के स्राव होने लगते हैं जो हमें स्वस्थ बनाते हैं। असल में लोगों के पास इतना टाइम ही नहीं बचा है कि वह किसी बात पर मुस्कान बिखेर दें। प्रकृति की इस अनुपम देन हास्य को बिसारने का ही शायद नतीजा है कि आज देश और दुनिया में ब्लड प्रेशर, हाईपरटेंशन, डायबिटीज जैसी बीमारियां घर करती जा रही हैं। यदि तनाव मुक्त रहना है, तो हमें बात-बात पर ठहाके लगाने होंगे, मुस्कान बिखेरनी होगी। लोगों को प्रेरणा देनी होगी कि वह भी हंसें और दूसरों को भी हंसने की प्रेरणा दें। यदि हम सच्चे मन से हंसना शुरू कर दें, तो लाफिंग क्लब जैसी चीजों को कतई जरूरत नहीं रहेगी। बस, हास्य की धारा सदैव प्रावाहित रहनी चाहिए।

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