संजय मग्गू
पूर्वी उत्तर प्रदेश में लोग मजाक में एक बात कहते हैं, पंडित को ब्याह कराने से मतलब, वर मरे चाहे कन्या। मैट्रिमोनियल साइट्स का काम भी लगभग ऐसा ही है। वह वर या कन्या को एक दूसरे का बॉयोडाटा दिखाता है, तस्वीरें शेयर करता है और जब दोनों पक्ष एक दूसरे को पसंद कर लेते हैं, तो वह दोनों पक्ष से अपनी फीस वसूलकर अलग हो जाता है। अब चाहे शादी चले या टूट जाए, उसकी बला से। आजकल तो ज्यादातर शादियां यह मैट्रिमोनियल साइट्स के जरिये ही तय हो रही हैं। अगर देश की विभिन्न अदालतों में तलाक के दर्ज होने वाले मामलों का विश्लेषण किया जाए, तो मैट्रिमोनियल साइट्स द्वारा तय कराई गई शादियां कुछ ज्यादा ही तलाक की चौखट पर पहुंच रही हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, हरियाणा, पंजाब आदि प्रदेशों में जब किसी का लड़का या लड़की जवान होने लगता है, तो समाज के ही कुछ लोग उसके रिश्ते की तलाश शुरू कर देते हैं। मामा, फूफा, चाचा, जीजा जैसे लोग योग्य वर अथवा कन्या के बारे में घर वालों को बताने लगते हैं। पंडित या नाई भी कई बार यह काम करते पाए जाते हैं। यदि लड़के वालों को बात समझ में आती है, तो बात आगे बढ़ती है। पंडित लड़का और लड़की की कुंडली मिलाता है, कितने गुण से शादी बन रही है, यह बताता है। वर और कन्या की नाड़ियां मिलाई जाती हैं। दोनों के रंग-रूप, चाल-चलन के बारे में चुपके से पता किया जाता है। इसके बाद शादी तय होती है, लेन-देन की बात होती है और फिर शादी हो जाती है। आमतौर पर ऐसी शादियों में दोनों पक्ष एक तरह से सामाजिक दबाव में होते हैं। शादी के साल-छह महीने तक बिचौलिया निगाह रखता है कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं है। यदि थोड़ी बहुत खटर-पटर हुई, तो लड़की के सास-ससुर, ननद, जेठानी-जेठ दोनों को समझा देते हैं। यदि बात लड़की के मां-बाप तक पहुंची तो वे भी आकर दोनों को समझा जाते हैं। और मामला निपट जाता है। सच कहें तो भारतीय समाज में तलाक का कोई कांसेप्ट ही नहीं है। परित्याग है। राम ने किसी कारणवश सीता का परित्याग किया था, लेकिन सीता से पत्नी का दर्जा नहीं छिना था। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पत्नी का परित्याग किया था, लेकिन वे आज भी मोदी की पत्नी के रूप समाज में सम्मान पाती हैं। दरअसल, ऐसी शादियों में एक तरह दबाव काम करता है और वह है सामाजिक दबाव। समाज वर और कन्या पर एक तरह का दबाव डालता है कि वह अपने आपसी झगड़े निबटा लें और एक दूसरे की कमियों को नजर अंदाज करते हुए जीवन निर्वाह करें। हां, संविधान में जरूर तलाक की व्यवस्था की गई है। अब तो हिंदुओं में भी संबंध विच्छेद यानी कि तलाक होने लगे हैं। इसके बावजूद आज भी सबसे ज्यादा शादियां टिकाऊ हैं, तो समाज द्वारा तय की गई शादियां ही। लव मैरिज, लिव इन रिलेशन, कोर्ट मैरिज और मैट्रिमोनियल साइट्स द्वारा कराई गई शादियां समाज द्वारा तय की गई शादियों के मुकाबले कम ही टिकाऊ हैं। क्योंकि ऐसी शादियों की विफलता के लिए समाज जिम्मेदार होता था और समाज अपने सिर पर यह कलंक कतई नहीं लेना चाहता है। इसलिए वह ऐसी शादियों को बचाने का भरपूर प्रयास करता है।
आज भी सबसे ज्यादा टिकाऊ हैं समाज से तय हुईं शादियां
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