संजय मग्गू
अजर-अमर होने की लालसा मानव सभ्यता के साथ ही पैदा हुई है। दुनिया की सभी सभ्यताओं में अजर-अमर होने के प्रयास की कहानियां बहुतायत में मिल जाएंगी, लेकिन क्या वे अजर और अमर हो पाईं? नहीं। अजर शब्द जरा शब्द का विलोम है। जरा का मतलब है बुढ़ापा। हमारे देश में भी बहुत सारी कहानियां हैं कि फला देवता या राक्षस ने अमुक भगवान की घनघोर तपस्या की और उससे अजर-अमर होने का वरदान मांगा, लेकिन उसके आराध्य ने असमर्थता जताते हुए दूसरा वरदान मांगने को कहा। दरअसल, संपूर्ण प्रकृति में एक इंसान ही है जो अमर होना चाहता है। बाकी जीव पैदा होते हैं, बच्चे पैदा करते हैं और बुढ़ापा आने पर मर जाते हैं। प्रकृति का नियम है जो पैदा हुआ है, उसकी मौत निश्चित है। अमेरिका के एक बिजनेस टॉयकून हैं ब्रायन जॉनसन। वे उम्र को मात देने की कोशिश में जुटे हैं। वह रिवर्स एजिंग यानी जवानी की ओर लौटने की कोशिश में लगे हुए हैं। अब अगर आदमी को अजर होने की सुविधा मिल जाए, तो वह कौन सी उम्र जीना चाहेगा। स्वाभाविक है कि वह हमेशा जवान ही रहना चाहेगा। मनुष्य की इसी अदम्य लालसा को भुनाती हैं तमाम कॉस्मेटिक कंपनियां। उम्र के निशानों को मिटाने के लिए बाजार में तमाम तरह की क्रीम, लोशन और जेल मौजूद हैं। योग और मेडिटेशन सिखाने वाले तरह-तरह के व्यायाम और आसन बताते हैं। आप जवान दिखते रहे, इसके लिए डाइट कंट्रोल करने की बात करते हैं। सुपरफूड लेने की सलाह देते हैं। जिम में जाकर पसीना बहाने की सलाह तो हर किसी को दी जाती है। बाल झड़ गए हैं, तो हेयरप्लांट की सलाह दी जाती है। चेहरे पर झुर्रियां न दिखें, इसके लिए बाजार ने बोटॉक्स का इंजेक्शन उपलब्ध करा रखा है, सप्लीमेंट और कई तरह के टॉनिक्स मौजूद हैं। आपके पास रोकड़ा है, तो खरीद लीजिए और जवां दिखिए। यह सारे प्रयास क्या वाकई जवान बना देते हैं? दरअसल, इंसान प्रकृति के खिलाफ जाकर तमाम उपायों को अपनाने के बाद भी सिर्फ जवां दिखता है, जवां होता नहीं है। जवां होने में और दिखने में फर्क है। बाजार आपकी इसी नासमझी का फायदा उठाता है। सच तो यह है कि हम जवान इसलिए रहना चाहते हैं क्योंकि हम मौत से डरते हैं। मौत को हम सहज नहीं मानते हैं। मौत से हमारा भयभीत होना ही बताता है कि हम नश्वर हैं। अमरता की खोज ही बताती है कि हम प्रकृति के इस पुरातन और चिर स्थायी सत्य को स्वीकार नहीं कर पाए हैं कि इस दुनिया में सबकी मृत्यु निश्चित है। तो फिर, हम मौत से भागकर कहां जाएंगे? जब हम इसके शिकंजे से बच नहीं सकते हैं, तो फिर क्यों न जीवन का भरपूर आनंद लिया जाए। हम अपनी छोटी सी जिंदगी में इतना सुख उठा लें कि जब मौत आए तो हमें किसी भी प्रकार का अफसोस न रहे। अमर होने की चाह ही बताती है कि हम नए को मौका नहीं देना चाहते हैं। हम नहीं चाहते हैं कि पुराना विदा हो और उसका स्थान नया ग्रहण करे। यदि पुराना ही अस्तित्व में बना रहेगा, तो फिर नए की उत्पत्ति कैसे होगी। सच, तो यह है कि अमरता प्रकृति और मानव समाज के लिए अभिशाप से कम नहीं है।
सचमुच जवां होने और दिखने में फर्क है, बाबू मोशाय!
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