संजय मग्गू
हमारे देश में विवाह को संस्कार माना गया है। विवाह एक ऐसा संस्कार है जिसके माध्यम से दो आत्माओं का मिलन होता है। यही वजह है कि भारतीय संस्कृति में प्राचीनकाल में तलाक की कोई अवधारणा नहीं मिलती है। हमारे देश में शायद तलाक यानी डाईवोर्स की परंपरा की शुरुआत मुगलों और अंग्रेजों के आगमन के बाद हुई। अंग्रेजों ने बाकायदा कानून बनाकर तलाक यानी संबंध विच्छेद को वैध करार दिया। इन दिनों करनाल जिले के एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग के तलाक का मामला काफी चर्चा में हैं। इस मामले में रोचक बात यह है कि दंपती अपने विवाह के 26 साल तक तो साथ रहे। 27 अगस्त 1980 में दंपती का विवाह हुआ था और सन 2006 में दोनों ने अलग रहने का फैसला किया। इस दौरान दो बेटियां और एक बेटा भी हुआ। छब्बीस साल तक एक साथ एक ही छत के नीचे रहने के बाद पति ने मानसिक क्रूरता का आरोप लगाकर करनाल के पारिवारिक अदालत में मुकदमा दायर किया। पति की याचिका को सन 2013 में पारिवारिक कोर्ट ने खारिज कर दी तो मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट पहुंचा और 44 साल के वैवाहिक जीवन का यहां पटाक्षेप हो गया। पति-पत्नी दोनों अलग हो गए। पति को अपनी जमीन जायदाद, फसल और गहने आदि बेचकर गुजारा भत्ता के रूप में तीन करोड़ सात लाख रुपये चुकाने पड़े। बच्चे अपनी मां के ही साथ हैं। अब बुजुर्ग की मौत के बाद बच्चों और पत्नी को बाकी बची संपत्ति में न तो हिस्सा मिलेगा और न ही अंतिम संस्कार में भाग ले सकेंगे। इन शर्तों के आधार पर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बुजुर्ग दंपती में आपस में कितनी कटुता रही होगी। दोनों का स्वभाव एक दूसरे के विपरीत बताया जा रहा है। वैसे तो हमारे देश में तलाक के बहुत कम मामले पारिवारिक अदालतों तक पहुंचते हैं। सन 2021 में देश भर में कुल पांच लाख मामले अदालत की चौखट तक पहुंचे थे। सन 2023 में यह संख्या आठ लाख तक पहुंच गई। इनमें तीन तलाक के मामले शामिल हैं या नही, यह जाहिर नहीं है। देश की लगभग 140-142 करोड़ की आबादी में यह संख्या लगभग नगण्य मानी जाएगी। इसके बावजूद यह सत्य है कि हमारे देश में तलाक के मामले धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। पारिवारिक विवाद में आमतौर पर घरेलू झगड़े, तलाक, गुजारा भत्ते की मांग, बच्चों पर अधिकार और मायके गई पत्नी को वापस लाने या विवाह के बाद शारीरिक संबंध न बनाने जैसे मामले आते हैं। यदि दोनों पक्ष थोड़ा सा लचीला रुख अपनाएं, तो बात को संबंध विच्छेद की चौखट पर पहुंचने से रोका जा सकता है। करनाल वाले ही मामले को लें। सत्तर साल की उम्र में बुजुर्ग को तलाक हासिल करने से क्या लाभ हुआ? गुजारा भत्ता के रूप में एक मोटी रकम देनी पड़ी वह अलग से।
थोड़ा सा लचीला रुख अपनाएं तो वैवाहिक जीवन को बचाना संभव
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