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कोई कायर व्यक्ति अपने जीवन में नहीं हो सकता विनम्र

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संजय मग्गू
हमें अपने जीवन में क्या चाहिए कमजोरी और लचीलापन या ताकत और कठोरता? कमजोरी और लचीलापन हमें लोगों के प्रति विनम्र होना सिखाती है। हम विनम्र हों, तो दूसरों को समझने की क्षमता रखते हैं। विनम्रता हमें आत्मज्ञान और दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाती है। हम इस बात को इस तरह से समझ सकते हैं कि जब बच्चा पैदा होता है, तो वह कमजोर होने के साथ-साथ लचीला होता है। उसकी हड्डियां नरम होती हैं। यही नरम और लचीली हड्डियां विकास करती हैं। विकास का पहला आधार नरमी और लचीलापन है। यदि गुब्बारा नरम और लचीला न हो, तो क्या उसमें हवा भरी जा सकती है। कतई नहीं? यह वजह है  कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में कहा गया कि विनम्र बनो। विचारों में लचीलापन रखो ताकि दूसरे अच्छे विचारों की गुंजाइश बनी रहे। हम दृढ़ और कठोर हो जाएंगे, तो दूसरे सद्विचारों के लिए हमारे मन और मस्तिष्क में जगह ही नहीं रहेगी। जन्म के समय नरम और लचीला पैदा हुआ बच्चा जब विकास की अंतिम अवस्था में होता है यानी बूढ़ा हो जाता है, तो उसकी वही नरम और लचीली हड्डियां कठोर हो जाती हैं और एक दिन वह आदमी मर जाता है। इस बात को पेड़-पौधों के माध्यम से समझ सकते हैं। पौधे लचीले होते हैं, उनको तोड़ा नहीं, मरोड़ा जा सकता है, लेकिन वही पौधा जब बड़ा हो जाता है, तो वह सख्त होता जाता है और एक दिन सूखकर नष्ट हो जाता है। जीवन का वास्तविक मर्म समझने के लिए विनम्र होना बहुत आवश्यक है। दुनिया में जितने भी महापुरुष या अवतार हुए हैं, उनकी जीवन गाथा पढ़कर देखिए कि ज्ञान प्राप्त होने के बाद वह शक्तिशाली होते हुए भी अपने को कमजोर और विनम्र दिखाते रहे। विनम्रता या लचीलापन कोई अवगुण नहीं है। ऐसा व्यक्ति ही आत्मचिंतन कर सकता है। अपने आप से बतिया सकता है। जब व्यक्ति अपने से बातें करता है, तो उसके मन में दूसरों के प्रति प्रेम उपजता है, श्रद्धा उपजती है, मोह पैदा होता है। ऐसा व्यक्ति समाज का बुरा नहीं सोच सकता है, विध्वंसक नहीं हो सकता है। बुरा होने या विध्वंसक होने के लिए कठोर होना जरूरी है। कठोरता बुरी है। भगवान राम महा प्रतापी राजा दशरथ के पुत्र थे। भगवान के अवतार थे। लेकिन जीवन में उनसे विनम्र उनके युग काल में कोई दूसरा नहीं दिखाई देता है। वह अपनी विनम्रता के कारण ही त्याग दी गई अहिल्या का दुख समझ पाए थे। गौतम अपने समय के एक सबसे शक्तिशाली गणराज्य के राजकुमार थे। जब उन्होंने बोध हुआ, तो वह विनम्र हो गए। उसी विनम्रता का परिणाम थी अहिंसा नीति। विनम्र कोई कायर नहीं हो सकता है। कोई साहसी और आंतरिक रूप से ताकतवर व्यक्ति ही विनम्र होकर संपूर्ण संसृति के प्रति दयालु हो सकता है। अहिंसा को मानने वाले मोहनदास करमचंद गांधी शरीर से भले ही कमजोर रहे हों, लेकिन उनकी विनम्रता में आत्मबल था। नए साल पर हमें अपने भीतर इसी विनम्रता को अपनाने का साहस दिखाना चाहिए। नए वर्ष की सबको हार्दिक शुभकामनाएं।

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