संजय मग्गू
हमारे देश की अर्थव्यवस्था में मांग लगातार घट रही है। मांग में गिरावट का कारण लोगों की जेब में पैसे का न होना है। आदमी की जेब में जब पैसे कम होते हैं, तो वह वही चीज खरीदता है, जो उसके लिए बहुत जरूरी हो। ऐसी स्थिति में रोटी, कपड़ा, मकान और दवा से इतर चीजों को खरीदने के लिए उसे कई बार सोचना पड़ता है। महंगाई भी सुरसा की तरह दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही है। देश की बहुसंख्य आबादी के लिए खाना पीना दुश्वार हो रहा है। अभी कुछ दिनों पहले भारत के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने कारपोरेट जगत की कंपनियों से कहा है कि वे अपने कर्मचारियों के लिए समुचित वेतन सुनिश्चित करें। अब मुख्य आर्थिक सलाहकार के सुझाव पर निजी क्षेत्र की कंपनियां अमल करेंगी या नहीं, यह तय नहीं है। अभी हाल ही में एनरॉक ग्रुप की एक रिपोर्ट आई है कि हमारे देश में आठ करोड़ रुपये से ज्यादा संपत्ति वाले अमीरों की संख्या साढ़े आठ लाख है, जो साल 2027 तक साढ़े सोलह लाख तक पहुंच जाने का अनुमान है। वहीं कर्मचारियों की तनख्वाह बढ़ने के बारे में आने वाली रिपोर्ट निराशाजनक है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक निजी कंपनियों का मुनाफा तो पिछले चार साल में चार गुना बढ़ा है। अमीरों की संख्या भी बढ़ी है, लेकिन पिछले चार सालों में सभी छह सेक्टरों में कर्मचारियों के वेतन में 0.8 से 5.4 प्रतिशत ही बढ़ा है। इन चार सालों में महंगाई दर वेतन वृद्धि दर से ज्यादा ही रही है। इसका सीधा सा मतलब है कि सन 2019 से 2023 तक वेतन वृद्धि नकारात्मक ही रही। लेकिन कर्मचारियों में इसके खिलाफ कोई सुगबुगाहट पूरे देश में सुनाई दी। नहीं, किसी भी कर्मचारी संगठनों ने इसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठाई। वैसे भी सरकार और निजी कंपनियों ने कर्मचारी संगठनों को या तो कमजोर कर दिया है या फिर अपनी मुट्ठी में कर लिया है। नौकरियों के अवसर लगातार घटते जाने की वजह से लोग अपनी कंपनियों पर समुचित वेतन वृद्धि का दबाव भी नहीं डाल पा रहे हैं। वर्तमान नौकरी छोड़ने पर दूसरी कोई मिलेगी भी या नहीं, इसकी कोई गारंटी नहीं है। वैसे भी भारत के लोग कम में ही काम चला लेने में माहिर हैं। चाहे जैसी परिस्थितियां हों, भारतीयों ने खुश रहना सीख लिया है। चार-पांच घंटे बिजली नहीं आई, कोई बात नहीं। बाकी घंटे तो आती है। घर के सामने नालियां बजबजा रही हैं तो भी संतोष है कि कम से कम हफ्ते में एक दिन तो सफाई होती है। महंगी होने के चलते सब्जी नहीं आ पाई तो क्या हुआ, चटनी-अचार से काम चल जाएगा। नौकरी नहीं मिल रही है, तो क्या हुआ, सरकार पांच किलो राशन तो दे रही है। यही क्या कम है कि रूखी-सूखी ही सही पेट तो भर जाता है। अमीर खुश हैं क्योंकि उन्हें हमारे देश में सस्ता श्रम उपलब्ध है जिससी वजह से उनकी पूंजी दिन-रात बढ़ रही है। हमारे देश के संतोषी लोग छोटी-छोटी बातों पर खुश हो लेते हैं। यही वजह है कि बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी को लेकर हमारे यहां कोई आंदोलन नहीं होता है। आंदोलन के लिए मंदिर-मस्जिद हैं न!
नौकरी नहीं है तो क्या, पांच किलो अनाज तो मिलता है
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